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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
ब्रह्माजीके मुखसें ब्राह्मण उत्पन्न भए, इत्यादि; यह भी महाअज्ञोंका कथन है. क्योंकि, अनादिकालसें जे जे योनियां जिन जिन जीवोंकी उत्पत्तिवास्ते नियत है, ते ते जीव तिन तिन योनियोंसें उत्पन्न होते हैं. । यदि ब्रह्मणादि चार वर्णोंकी मुखादि योनियां थी, तब तो ब्राह्मण सदाही ब्रह्माजीके, वा अपने पिताके सुखसेंही उत्पन्न होने चाहिए; और क्षत्रिय ब्रह्माजीकी, वा अपने पिताकी बाहांसें उत्पन्न होने चाहिए; ऐसेंही वैश्य, और शूद्र भी जानने और इसतरें उत्पन्न तो नही होते हैं, इसवास्ते यह प्रत्यक्षविरुद्ध वेदका कथन कौन बुद्धिमान् मानेगा ? कोइ भी नही मानेगा. तथा इस कथनमें यह भी शंका उत्पन्न होती है कि, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह तो ब्रह्माजीके पूर्वोक्त अंगों सें उत्पन्न भए, परंतु ब्राह्मणी, क्षत्रियाणी, वणियाणी, और शूद्रणी ये चारों कहांसें उत्पन्न हुई हैं? क्योंकि, इनकी उत्पत्ति वास्ते ऋग्वेद यजुर्वेदके मूलपाठ में और भाष्य में उपलक्षण भी नही लिखा है. क्या ब्राह्मणादिकोंके मूखसें, वा गुदासें ब्राह्मणी आदिकोंकी उत्पत्ति माननी चाहिए ? वा जिन स्थानोंसें ब्राह्मणादि चारोंकी उत्पत्ति हुई, वेही ब्राम्हणी आदि चारोंके उत्पत्तिस्थान मानने चाहिए? यदि ऐसें मानोंगे, तब तो प्रथम पक्षमें तो यावत् स्त्रीजातित्वावछिन्न सर्व पुत्रीरूप होंगी; और दुसरे पक्षमें भगिनी (वहिन) रूप होंगी; तो क्या पुत्री, वा बहिनसें पाणिग्रहणादि क्रिया करनेसें पूर्वोक्त माननेवालेकों लज्जा न आवेगी ? स्यात्, ना भी आवे; क्योंकि, स्त्री, पुत्री, बहिन, माता, पति, पुत्र, भ्राता, पितादि, वास्तविकमें है ही नही; सर्व एक ब्रह्म होनेसें. वाह जी वाह ! क्या सुंदर श्रद्धा निकाली है, भला शोचो तो सही, इससे अधिक नास्तिकपणा क्या है ?
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तथा तुमारे माननेमुजब न्यायकी बात तो यह है कि, जैसें ब्रह्माजीके चारों अंगोंसें ब्राह्मणादि चारोंकी उत्पत्ति लिखी है; ऐसेंही ब्रह्माजीकी स्त्रीके मुखसें ब्राह्मणी, बाहांसें क्षत्रियाणी, इत्यादि मानना चाहिए, परंतु इसमें भी फेर टंटाही रहेगा कि, ब्रह्माजी की स्त्री कहांसें उत्पन्न भई ?
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