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________________ २१४ तत्त्वनिर्णयप्रासादहमारा फल क्यों नहीं देता है? इस हेतुसें ईश्वरकों सृष्टि रचनेकी इच्छा उत्पन्न भइ ? अथवा वे कर्म ईश्वरके साथ लडके ईश्वरकी आज्ञासें बाहिर हुए चाहते हैं, तिनके राजी रखनेकों ईश्वरकों सृष्टि रचनेकी इच्छा उत्पन्न होवे हैं ? इत्यादि अनेक विकल्प कर्मों में उत्पन्न होते हैं. परंतु प्रथम तो चारों वेदोंमें, और अन्य मतोंके शास्त्रोंमें, कर्मोंका यथार्थ स्वरूपही कथन नहीं करा है. जेकर कर्मोंका स्वरूप लिखा भी है, तो भी, जीवहिंसा करनी, मृषा बोलना, चोरी करनी, परस्त्रीगमन करना, क्रोध, लोभ, मद, माया, छल, दंभादि करनेका नाम कर्म लिखा है; परंतु येह तो कर्मोके उत्पन्न करनेकी क्रिया है, नतु कर्म. जैसें घट उत्पन्न करनेमें कुलालका चक्रभ्रमणादिव्यापाररूप क्रिया है, तिस क्रियासें घट उत्पन्न होता है; तैसेंही, जीवहिंसादि पूर्वोक्त सर्व कर्मोंके उत्पन्न करनेकी क्रिया है, परंतु कर्म नही. तथा कितनेक कहते हैं, प्रारब्ध कर्म १, संचितकर्म २, और क्रियमाण कर्म ३, ये तीनप्रकारके कर्म है. परंतु कर्म वस्तु क्या है? जब संचित कर्म है, वो संचयिक वस्तु क्या है? जो फल देनेमें उन्मुख होवे, सो कर्म क्या वस्तु है? जे कर्म जीवकेसाथ प्रवाहसें अनादि संबंधवाले हैं, वे क्या वस्तु है? हे ! प्रियवाचकवर्गो ! किसीमतमें भी यथार्थ कर्मोंका स्वरूप नही लिखा है, इसवास्तेही अर्हन भगवान्के विना सर्वमतोंवाले यथार्थ कर्मस्वरूपके न जाननेसें सर्वज्ञ हो थे. पूर्वपक्षः-अर्हन् भगवान्ने कर्मोका कैसा स्वरूप कथन करा है ? उत्तरपक्षः-विस्तार देखना होवे तब तो, षट्कर्मग्रंथ, पंचसंग्रह, कर्मप्रकृतिआदि शास्त्रोंकों गुरुगम्यतासें पठन करो; और संक्षेपसें देखना होवे तो, हमारी रची जैनप्रश्नोत्तरावलिसें कर्मोंका किंचिन्मात्रस्वरूप देख लेना. - अब हम ऊपर सप्तम स्तंभमें लिखी वेदकी श्रुतियोंकीही किंचित् परीक्षा करते हैं. तीसरी श्रुतिमें लिखा है कि, सृष्टिसे पहिले प्रलयदशामें भूत भौतिक सर्व जगत् अज्ञानरूप तमःकरके आच्छादित था, अर्थात् आत्मतत्वके आवरक होनेसें माया, अपरसंज्ञाभावरूप अज्ञान इहां तमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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