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________________ षष्ठस्तम्भः । १८३ कहते हैं ॥ १०॥ जो सो परमात्मारूप कारण (अव्यक्त) बायेंद्रियोंके अगोचर (नित्य) उत्पत्तिविनाशरहित सत् असत् आत्मक तिसने जो उत्पन्न करा पुरुष, तिसकों लोकमें ब्रह्मा कहते हैं. ॥ ११॥ तिस अंडेमें ब्रह्मा ब्रह्ममानवाले वर्षतक रह करके अपने ध्यान करके तिस अंडेके दो भाग करता भया. ॥ १२॥ तिन दोनों खंडोंसें-भागोंसें-ऊपरले भागसें देवलोक, और नीचले भागसें भूलोक, और दोनों भागोंके बीचमें आकाश विदिशासहित आठ दिशा और पाणीका स्थिरस्थान समुद्र इनकों रचता भया. ॥ १३ ॥ ब्रह्मा परमात्माके पाससें तिसरूपकरके मनका उद्धार करता भया, युगपत् ज्ञान अनुत्पत्तिलक्षणसें मन सत् है, और अप्रत्यक्ष होनेसे असत् है, मनके पहिले अहंकारतत्त्व अहं ऐसा अभिमाननामक कार्ययुक्त ईश्वर स्वकार्यरक्षणसमर्थकों उत्पन्न करता भया. ॥ १४ ॥ महत्नामक जो तत्व है तिसकों अहंकारसे पहिले परमात्मासेंही उद्धार करता भया, और आत्माकों उपकार करनेवाली तीनो गुण सत्त्व रजः तमःयुक्त विषयोंके ग्रहणहारि पांच इंद्रियोंको क्रमकरके उत्पन्न करता भया और च शब्दसें पायुआदि पांच कर्मेद्रिय और पांच तन्मात्रको उत्पन्न करता भया.॥१५॥ तिन पूर्वोक्त अहंकार और पांच तन्मात्र छहोंके सूक्ष्म जे अवयव है तिन अवयवोंको आत्ममात्रविषे पूर्वोक्त छहोंकें अपने विकारोंमें जोडकरके मनुष्य तिर्यस्थावरादि सर्वभूतोंको परमात्मा रचता भया, तिनमें तन्मात्रोंका विकार पांच महाभूत, और अहंकारका इंद्रियां, पृथिवीआदिभूतोंविषे शरीररूपकरके परिणत ऐसें भूतोंविषे तन्मात्र और अहंकारकी योजना करके संपूर्ण कार्यजातका निर्माण करा, इसीवास्तेही पूर्वोक्त ६,(अमितौजस)अनंतकार्यके निर्माण करनेसें अतिवीर्यशाली है॥१६॥ जिसवास्ते (मूर्ति) शरीर है, तिसके संपादक अवयव सूक्ष्म तन्मात्र अहंकाररूप षट् है, प्रकृतिसहित तिस ब्रह्मके यह जे आगे कहेंगे वे भूत और इंद्रिय पूर्व कहे हुए कार्यपणेकरके आश्रय करते हैं, तन्मात्रोंसें भूतोंकी उत्पत्ति होनेसें और अहंकारसें इंद्रियोंकी उत्पत्ति होनेलें, तिसवास्ते तिस ब्रह्मकी मूर्ति (स्वभाव) तिनको तैसें परिणतोंकों इंद्रियादिशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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