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तत्त्वनिर्णयप्रासादऔर जो हमारी इस बालक्रीडामें भूल होवे, सो सुज्ञ जनोंकों सुधार लेनी चाहिए.
ऊपर हम अन्य २ मतोंवाले जिसतरें सृष्टि अर्थात् जगत्की उत्पत्ति मानते हैं, सो लिख आए हैं. अब प्रेक्षावानोकों विचार करना चाहिए कि, इन पूर्वोक्त सृष्टिवादीयोंमेंसें सत्य कथन किसका है, और मिथ्या क. थन किसका है ?
पूर्वपक्षः--जो तुमने सृष्टिविषयक मत लिखे हैं वे सर्वमतधारियोंकी कल्पना मिथ्या है, परंतु मनुस्मृति उपनिषद्वेदादिमें जो सृष्टिक्रम लिखा है, सो सर्व सत्य और माननीय है, अन्य सर्वमतावलंबियोंने अपने २ मतोंमें मिथ्या कल्पनामात्र लिखा है. विशेषतः वेदोंमें जो क्रम है, सो अधिकतर माननीय है, क्योंकि वेदोंमें जो कथन है, सो ब्रह्माजीका है.
उत्तरपक्षः--मनुस्मृत्यादिका सृष्टिक्रम यदि सत्य होवे, और युक्तिप्रमाणसे अबाधित होवे तो, ऐसा कौन प्रेक्षावान् है, जो तिसकों न माने? परंतु हे प्यारे! मनुस्मृत्यादिमें जो सृष्टिक्रम है, सोभी परस्परविरुद्ध है, और युक्तिप्रमाणसें बाधित है, विशेषतः वेदोंका और वेदोंमें जो कथन है तिस्सेंही यह सिद्ध होता है कि, वेद ईश्वरकृत नही है, जो कि, आगे किंचिन्मात्र लिखेंगे.॥
इति श्रीमाद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे लोकत
स्वनिर्णयांतर्गतसृष्टिवर्णनो नाम पंचमः स्तंभः॥५॥
॥ अथ षष्ठस्तम्भारम्भः॥ पंचमस्तंभमें लोकतत्त्वनिर्णयांतर्गत वेदस्मृत्यायनुसार संक्षेपरूप सृ. ष्टिक्रम वर्णन करा, अथ षष्ठस्तंभमें कुछक विस्तारसे करते हैं. परं च इस हमारे लेखकों पक्षपात छोडके वाचक जन सूक्ष्मबुद्धिसे विचार करेंगे तो उनकों सत्यासत्य कथन यथार्थ विदित हो जावेगा; और जो अपने वंशपरंपरासें चली आई रूढीकाही पक्ष करेंगे, तब तो तिनकों
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