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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
ष्ठित है, सो भगवान् तिस अंडेमें एक वर्ष रहकरके अपने ध्यानसें तिस अंडे के दो भाग करता हुआ, तिन दोनों टुकडोंमें ऊपरले टुकडेसें आकाश और दूसरे टुकडेसें भूमि निर्माण करता भया. इत्यादि। १ । २॥ ३ ॥ “अहेतुवादिनश्चाहुः ॥
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तुरहिता भवन्ति हि भावाः प्रतिसमयभाविनश्चित्राः॥ भावादृते न द्रव्यं संभवरहितं खपुष्पमिव ॥१॥
व्याख्या - अहेतुवादी कहते हैं - [ प्रायः अहेतुवादी, परिणामवादी, और नियतिवादी, येह यदृच्छावादीहीके भेद मालुम होते हैं ] प्रतिसमय होनेवाले विचित्र प्रकारके जे भाव हैं, वे सर्व अहेतुसेंही उत्पन्न होते हैं, और भावसें रहित द्रव्यका संभव नही है, आकाशके पुष्पकीतरें. ॥ १ ॥ “ परिणामवादिनश्चाहुः ॥
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प्रतिसमयं परिणामः प्रत्यात्मगतश्च सर्व भावानाम् ॥ संभवति नेच्छयापि स्वेच्छाक्रमवर्त्तिनी यस्मात् ॥ १ ॥
व्याख्या -- परिणामवादी कहते हैं - समय २ प्रति परिणाम, प्रतिआत्मगत आत्मा २ प्रति प्राप्त हुआ, सर्वभावोंको संभव होता है, इच्छासें कुछभी नही होता है; क्योंकि स्वेच्छा क्रमवर्तिनी है, और परिणाम तो युगपत् सर्व पदार्थों में है ॥ १॥
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“ नियतिवादिनश्चाहुः ॥ "
प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः
सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा ॥ भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने
नाभाव्यं भवति न भाविनोस्ति नाशः ॥ १॥
सत्त्यं पिशाचाः स्म वने वसामो भेरी करायैरपि न स्पृशामः ॥ अयं च वादः प्रथितः पृथिव्यां भेरीं पिशाचाः किल ताडयन्ति ॥ २ ॥
व्याख्या - नियतिवादी कहते हैं-नियतिबलाश्रयकरके जो अर्थ प्राप्तव्यप्राप्तहोने योग्य है, सो शुभ वा अशुभ अर्थ पुरुषोंको अवश्यमेव होता है,
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