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________________ १२८ तत्त्वांनेणेयप्रासाद पीड्यो ममैष त ममैष त रक्षणीयो तु मथ्यो ममैष तुन चोत्तमनीतिरेषा ॥ निःश्रेयसाभ्युदयसौख्यहितार्थ बुद्धे वीरस्य सन्ति रिपवो न च वञ्चनीयाः ॥ २५ ॥ व्याख्या -- यह मेरेकों पीडनेयोग्य - दुःख देनेयोग्य है, और यह मेरेकों रक्षणेयोग्य है, और यह मेरेकों मथने योग्य है, और यह मथने योग्य नहीं है, इत्यादि यह पूर्वोक्त नीति-न्याय पूर्वोक्त काम करनेवाले देवोंका उत्तम कर्म नहीं है, 'रागद्वेषपूर्वकत्वात् ' - और जिससे जीवोंको मुक्ति, और पुण्यानुबंधी पुण्यके उदयसें स्वर्गप्राप्तिरूप सुख, और इसलोकपरलोक में हित होवे, ऐसी बुद्धिवाले अर्थात् ऐसे ज्ञानसत्योपदेशवाले, श्रीमहावीर भगवंतके रिपु वैरि तो जगत्में बहुत हैं, परंतु श्रीमहावीरजीकों वंचनीय कोई भी नहीं है, अर्थात् बध्य करणे योग्य, पीडा देने योग्य, मथनेयोग्य, कोई भी नहीं है. वीतरागत्वात्. ॥ २५ ॥ रागादिदोषजनकानि वचांसि विष्णो रुन्मत्तचेष्टितकराणि च यानि शंभोः ॥ निःशेषरोपशमनानि मुनेस्तु सम्यग्वन्द्यत्वमर्हति तु को नु विचारयध्वम् ॥ २६ ॥ व्याख्या - पुराणादि शास्त्रों में विष्णुके वचनरागादिदोषोंके जनक उपलब्ध होते हैं; और पूर्वोक्त शास्त्रोंमेंही शंभु महादेवके वचन उन्मत्तपणेकी चेष्टाके उपलब्ध होते हैं; और जैनागममें मुनि श्रीमहावीर अर्हन्के वचन संपूर्ण रोष, उपलक्षणसें रागकामादिके शमन करनेवाले उपलब्ध होते हैं; अब हे वाचकवर्गो ! तुमपक्षपातकों छोड़के अच्छीतरे विचार करो कि, इन पूर्वोक्त देवों में वंदना करनेयोग्य कौन देव है ? ॥ २६ ॥ योद्यतः परवधाय घृणां विहाय त्राणाय यश्च जगतः शरणं प्रवृत्तः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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