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तत्वनिर्णयप्रासादस्पर्श रहित, गुणसें नव पुराणादि करनेका हेतु है.और रूपी अजीव पुद्गल रूप द्रव्यसें पुदल द्रव्य अनंत है, क्षेत्रसें लोकप्रमाण है, कालसें अनादि अनंत है, भावसें वर्ण गंध रस स्पर्श वाला है. मिलना और विच्छड जाना यह इसका गुण है; इन पूर्वोक्त पांचों द्रव्योंका नाम अजीव है. २. __ तथा पुण्य जो है, सो शुभ कर्मोंके पुद्गल रूप है, जिनके संबंधसे जीव सांसारिक सुख भोगता है. ३. इससे जो विपरीत है सो पाप है. ४.मिथ्या त्व (9)अविरति (२) प्रमाद (३) कषाय (४)और योग (६) यह पांच बंधके हेतु है; इस वास्ते इनकों आस्रव कहते हैं, ५. आस्रवका निरोध जो है सो संवर है, अर्थात् सम्यग्दर्शन, विरति, अप्रमाद, अकषाय, और योगनिरोध, यह संवर है. ६. कर्मका और जीवका क्षीरनीरकी तरें परस्पर मिलना तिसका नाम बंध है.७. बंधे हुए कर्मोंका जो क्षरणा है सो निर्जरा है. ८.और देहादिकका जो जीवसे अत्यंत वियोग होना और जीवका वस्वरूपमें अवस्थान करना तिसका नाम मोक्ष है. ९. *
इन पूर्वोक्त नवही तत्त्वोंका स्याद्वाद शैलीसें शुद्ध श्रद्धान करना तिसका नाम सम्यग्दर्शन है; और इनका स्वरूप पूर्वोक्त रीतिसें जानना तिसका नाम सम्यग्ज्ञान है; और सत्तरें भेदें संयमका पालना तिसका नाम सम्यक्चारित्र है; इन तीनोंका एकत्र समावेश होना तिसका नाम मोक्षमार्ग है; जड, और चैतन्यका जो प्रवाहसें मिलाप है, सो संसार है; यह संसार प्रवाहसें अनादि अनंत है, और पर्यायोंकी अपेक्षा क्षण विनश्वर है. इत्यादि वस्तुका जैसा स्वरूप था, तैसाही, हे जिनाधीश ! तैंने कथन करा है, ऐसे कथन करनेसें तैंने कोई नवीन कुशलता-चातुर्यता नही प्राप्त करी है, क्योंकि, जेसे अतीतकालमें अनंत सर्वज्ञोंने व. स्तुका स्वरूप यथार्थ कथन करा है, तैसाही तुमने कथन करा है, इस वास्ते, (तुरंगशृंगाण्युपपादयद्भयः) घोडेके श्रृंग उत्पन्न करनेवाले (परेभ्यःनवपंडितेभ्यः) पर नवीन पंडितोंकेतांइ (नमः) हमारा नमस्कार होवे, अर्थात् जिनोंने तुरंगभंग समान असत् पदार्थ कथन करके
* जीवानीवादि नव पदार्थों का स्वरूप जैनतत्वादर्श ग्रंथमें विस्तारसें लिखा है, इस वास्ते यहां नहीं लिखा है.
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