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________________ ૭૮ तत्वनिर्णय प्रासाद सरस अमृतरससमान समस्त लोकोंको प्रमोद देनेवाली वाणीकरके धर्म'देशना देते हैं, तिस वखत देवता तिस भगवंतके स्वरको अपनी ध्वनिकरके अखंड (पूर्ण) करते हैं. यद्यपि मधुरमें मधुर पदार्थ भी भगबानूकी वाणीमें अधिक रस है, तथापि अन्य जीवके हितवास्ते भगवान् जो देशना देते हैं सो मालवकोश रागमें देते हैं; जिस वखत भगवान् मालवकोश रागकरके देशना आलापते हैं, तिस वखत भगवान्‌ के दोनों तरफ रहे हुए देवता मनोहर वेणु वीणादिके शब्दकरके तिस भगवान्की वाणीको अधिकतर मनोज्ञ करते हैं. जैसें कोई सुखर करके गयन करता होवे, उसके पास वीणादिके शब्दकरके ध्वनि पूर्ण करें. ॥ ३ ॥ चामर- केलिस्तंभमें लगे हुए तंतु निकरके समान मनोहर दंडमें लगे हुए अनेक रत्नोंकी किरणोंकरके मानो इंद्रधनुष्य काही विस्तार न होता होय ? ऐसे रत्नोंकरके जडित सुवर्णदांडीसहित श्वेत चामर भगवान् के दोनोंपासे देवता करते हैं, तथा इंद्रभी करते हैं ॥ ४ ॥ आसणाई च- आसनानि च अनेक रत्नचूनीयांकरके विराजमान सुवर्णमय मेरुशृंगकीतरह ऊंचा और अनेक कर्मरूप वैरिके समूहकों मानो डराते न होय ? ऐसें साक्षात् सिंहरूपकरके शोभायमान ऐसा सुवर्णमय सिंहासन देवता करते हैं, तिसके ऊपर बैठके भगवान् देशना देते हैं. ॥ ५ ॥ भावलय - भामंडल - भगवंतके पीछे शरदऋतु संबंधि सूर्यकी किरणों कीतरह दुर्दर्श अत्यंत देदीप्यमान श्री वीतरागके मस्तकके पीछले भाग में भामंडलकीतरह भामंडल होता है. "भा” नाम कांति, तिसका मंडल अर्थात् मांडला सो भामंडल, विनाभामंडल के भगवान्‌ के मुखसन्मुख अतिशय तेजोमय होनेसें, कोई देख नही सक्ता है. इस वास्ते, देवता भामंलकी रचना करते हैं. ॥ ६ ॥ भर-भरी ढका दुंदुभिरिति यावत् - जिसने अपने भोंकार शब्दकरके विश्वका विवर भरा है ऐसी भेरी शब्दायमान करते हैं. मानो भेरीका शब्द तीन जगत्के लोकोंको ऐसें कहता न होय ? कि "हे जनो ! तुम प्रमादको छोडके श्री जिनेश्वर देवको सेवो, यह जिनेश्वर देव मुक्तिरूपी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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