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________________ द्वितीयस्तम्भः। जबताइ चौथा गुणस्थान प्राप्त नहीं होता, तबताइ बाह्यात्मा कहा जाता है. और चौथे गुणस्थानसे लेकर बारमे गुणस्थानतांइ देहमें रहे, तिसकों अंतरात्मा कहते हैं. यह तीनो प्रकारका शिव कहा जाता है॥१८॥ सकलो दोषसंपूर्णो निष्कलो दोषवर्जितः॥ पञ्चदेहविनिर्मुक्तः संप्राप्तः परमं पदम् ॥ १९॥ भाषा-जबताइ सकल है, अर्थात् घातिकर्मचतुष्टयकी उत्तरप्रकृतियां ४७ रूप कलाकरके संयुक्त है तबताइ सदोष है, ओर जगत्में भ्रमण करता है. और जब निष्कल होता है, पूर्वोक्त उपाधियोंसे रहित होता है तब दोषविवर्जित है. और पंच देह (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कामण,) इन पांचप्रकारके शरीरोंसे मुक्त होता है, तब परमपदकों प्राप्त होता है ॥ १९ ॥ एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥ तान्येव पुनरुक्तानि ज्ञानचारित्रदर्शनात् ॥ २० ॥ भाषा-एकमूर्ति द्रव्यार्थिकनयके मतसें, परंतु एकही मूर्त्तिके पर्यायार्थिक नयके मतकरके तीन भाग ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वररूपसे कहे हैं, वे ऐसे हैं. ज्ञानस्वरूपकों विष्णु, चारित्रस्वरूपकों ब्रह्मा और सम्यग्दर्शनस्वरूपकों महेश्वर कहते हैं. पर्यायार्थिकनयके ये तीनो गुण अविरोधिपणे एक द्रव्यमें रहते हैं. जैसें अग्निमें उष्णता, पीतता, रक्तता रहती है. तैसें एक आत्माद्रव्यमें तीन गुण एकमूर्तिमें रहतेहैं. इस हेतुसे तीनोंकी एक मूर्ति है ॥ २० ॥ ___ अब लौकिक मतमें जो तीन देवोंकी एकमूर्ति मानते हैं, सो संभव नही होती है, सोही दिखाते हैं. एकमर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ॥ परस्परं विभिन्नानामेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २१ ॥ भाषा-एकमूर्ति, तीन भाग, ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, इन तीनो परस्पर विशेष भिन्नोंकी एकमूर्ति कैसे होवे ? अपि तु न होवे || २१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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