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श्रीमन् देवसरिकृत उपधानप्रकरण उपधान तपके उद्यापनरूप मालारोपणका विधि
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पृष्ठ ४५७
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४६९-४९२
(३०) त्रिंश स्तंभ--श्रावककी दिनचर्याका वर्णन ....
शयनसें उठनेका विधि .... .... अहत्कल्प कथनानुसार पूजाविधि .... ... लघुस्नानविधि .... ....
.... ....
४६९ ४७८
(३१) एकत्रिंश स्तंभ-सोलवा अंत्य संस्कारका वर्णन .... ४९२-५०३ आराधनाविधि .... .... .... .... .....।
.... ४९२ क्षामणाविधि .... .... सागार अनशनका विधि, इसमें अनशन किसने, किसको, कब
करवाना सो विधि है .... .... .......... .... ४९८ संस्कारसमाप्ति अनंतर विज्ञापन ..... .... ... .... ५०२
५१४
(३२) दानिश स्तंभ जैनमतकी प्राचीनता और वेदके पाठों और अर्थोंमें गवड हुई है, तिसको सिद्धि
...... ५०३-५३४ जैनमत वेदव्यासजीसें प्रथम विद्यमान था, ऐसा वेदव्यासके प्रमाण
सेही सिद्ध किया है .... .... .... ... .... ५११ महाभारतके प्रमाणसे जैनमतकी प्राचीनता .... .... .... मत्स्यपुराणके लेखसें जनमतकी प्राचीनता ....
... .... वेदसंहितादिकोंमें जैनका नाम है या नही इत्यादि वर्णन....
५१५ भावयज्ञका स्वरूप .... वेदोंमें मेमि और अरिष्टनेमि शब्द आता है सो जैनके तीर्थकर है,
इत्यादि वर्णन .... .... तैत्तरीय आरण्यकमें प्रकटपणे अहनकी स्तुति करी है तिसका वर्णन ५२१ जैनी लोक कितनेक वैदिक वचनोंका अनादर करते हैं, जिसका
मनुस्मृतिद्वारा कारण योगजीवानंद सरस्वति स्वामिका पत्रकी नकल, जिसमें जैनमत
को सर्वोत्तम सिद्ध किया है .... .... .... ... ५२६ (आत्मारामजीकी स्तुतिका) पूर्वोक्त महाशयका बनाया मालाबंध श्लोक ५२८ जैनमतमें प्राचीन व्याकरण. तर्कशास्त्र नहीं है, ऐसी आशंकाका
समाधान....
३९
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५२६
जसमें जैन
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