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________________ पृष्ठ ४०८ ४०१ (२७) सतविंश स्तंभ-पंदरमा व्रतारोपसंस्कारका व्रतसंस्कारकी आवश्यकता .... .... ... व्रतसंस्कार कराने योग्य गुरुका वर्णन .... .... ....... .... व्रतसंस्कार धारण करने योग्य गृहस्थका वर्णन शास्त्र प्रायः प्राकृत में हैं जिसका कारण सम्यक्त्व सामायिकारोपणविधि .... आठ थूईसें देववंदन करनेका विधि .... .... अरिहणादि स्तोत्र .... .... .... सम्यक्त्वारोपणविधि दंडकपाठसहित बावीस अभक्ष्यादि नियमवर्णन । सम्यकत्वकी देशना, स्वरूप .... मिथ्यात्वका स्वरूप .... .... देवस्वरूप ..... .... .... अदेवस्वरूप .... ... .... ..... .... .... .... गुरूस्वरूप, कुगुरुस्वरूप .... सम्यकत्वके पांच लक्षण, पांच भूषण, पांच दूषण .... .... ४२४ ४२७ ४२८ ४२९ (२८) अष्टाविंश स्तंभ-व्रतारोपसंस्कारमें देशविरतीवतकावर्णन ४३४-४४८ सामायिक आरोपण करनेका विधि .... .... दंडक पाठ .... .... .... परिग्रहप्रमाणटिप्पन-बारां ब्रतोंका स्वरूपवर्णन .... .... .... ४३७ छमहीने पर्यंत सामायिकवतका विधि .... .... एकादश (११) प्रतिमोहनविधि .... (२९) एकोनत्रिशस्तंभ-व्रतारोपसंस्कारमें श्रुत सामायिक आरोपण विधिका वर्णन .... ....४४९-४६९ नमस्कार स्वरूप, तिसके उपधानका विधि ... ईर्यापथिकीका उपधान .... शक्रस्तव ( नमुत्थुणं) का उपधान ४५३ चैत्यस्तवका, चतुर्विंशति स्तवका उपधान श्रुतस्तवका उपधान सिद्धस्तव वाचना.... .... ४५५ .... ४५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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