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तत्त्वनिणेयप्रासादउत्पत्ति होवें ? अहो स्वपक्षपाती देवानांप्रिय बौद्धो! जो वस्तु स्वयं एक निरंशरूपादिक्षण लक्षणकारणसें युगपत् अनेक कारणसाध्य अनेक कार्योंको अंगीकार करता हुआ भी परपक्षे नित्य भी वस्तुमें क्रमकरके नाना कार्य करनेमें भी विरोध उद्भावन करता है. तिस वास्ते, क्षणिक भावको भी अक्रमकरके अर्थक्रिया दुर्घट है. इस वास्ते एकांत अनित्यसें भी क्रमाक्रम व्यापकोंकी निवृत्ति होनेसें व्याप्य अर्थक्रिया भी निवृत्त होवे है. और तिसकी निवृत्तिके हुए सत्व भी व्यापकानुपलब्धिबलकरकेही निवर्त्तता है. इससे एकांत अनित्यवाद भी रमणीय नही है.
और स्याद्वादमें तो पूर्वोत्तराकार परिहार स्वीकार स्थिति लक्षण परिणाम करके भावोंको अर्थक्रियाकी उपपत्ति अविरुद्ध है. ऐसे भी न कहना कि, एकत्र वस्तुमें परस्पर विरुद्ध धर्माध्यासयोगसे स्याद्वाद असत् है. क्योंकि, नित्य पक्ष अनित्य पक्षसे विलक्षण पक्षांतरके अंगीकार करनेसें. और तैसेंही सर्व जनोने अनुभव करनेसें ॥१॥ तथाच पठति ॥भागे सिंहो नरो भागे योर्थो भागद्वयात्मकः॥
तमभागं विभागेन नरसिंहं प्रचक्षते ॥२॥ . भावार्थः-तथा वैशेषिकोंने भी चित्ररूप एक अवयवीके माननेसें एकही पटादिके चलाचल रक्तारक्त आवृतानावृतत्वादि विरुद्ध धर्मोकी उपलब्धिसे और सौगतोंने भी एकत्र चित्रपटी ज्ञानमें नील अनीलके विरोधको अनंगीकार करनेसे स्याद्वाद मानाहै. यहां यद्यपि अधिकृतवादी प्रदीपादिकको कालांतर अवस्थायि होनेसे क्षणिक नही मानते हैं. तिनके मतमें पूर्वापर तावत् छिन्नसत्ताकोही अनित्यता लक्षणतें. तो भी बुद्धिसुखादिकको वे भी क्षणिकताकरकेही मानते हैं. तिनके अधिकारमें भी क्षणिकवाद चर्चा अनुपपन्न नही हैं. और जो भी कालांतरावस्थायि वस्तु है, सो भी नित्यानित्यही है. क्षण भी ऐसा कोई नही है. जहां वस्तु उत्पा-दव्ययध्रौव्यात्मक नहीं है. इति काव्यार्थः ॥ २॥
महेश्वरका स्वरूप कथन करके महादेवका स्वरूप श्लोक ११ करके कथन करते हैं
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