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________________ तत्वनिर्णयप्रासाद... पूर्व पक्षः-जैनमतके सर्व शास्त्र प्राकृत भाषामें रचे हैं, इस वास्ते प्रमाणिक नहीं हैं. उत्तर पक्ष:-यह कहना अयुक्त है. किसी भी भाषामें सच्चा पुस्तक लिखा हुआ होवे, सो सर्व सुज्ञ जनोंकों प्रमाण है. और प्राकृत भाषाकी बाबत तो वेदांग शिक्षामें ऐसें लिखा है. “त्रिषष्टिः चतुःषष्टिा वर्णाः शंभुमते मताः ॥ प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा ॥३॥" भावार्थ यह है कि, त्रेसठ (६३) वा चौसठ (६४) वर्ण शंभुके मतमें प्रमाण हैं. प्राकृतमें और संस्कृतमें आप स्वयंभूने कथन करे हैं. और पाणिनी वररुचि प्रमुखोंने प्राकृतके व्याकरण रचे हैं. जेकर प्राकृत भाषा प्रमाणिक न होवे तो व्याकरण क्यों रचे जाते ? ___ हंटर साहिब अपने रचे संक्षिप्त हिंदुस्थानके इतिहासमें लिखते हैं कि, हिंदुस्थानकी मूल भाषा पुराणी प्राकृत है.. ___ रुद्रटप्रणीत काव्यालंकारकी टिप्पणी करनेवाले लिखते हैं कि, प्राकृत भाषा प्रथम थी. तिस्सेही संस्कृत बनाई गई है. और संस्कृत यह जो शब्द है, सो भी यही ज्ञापन करता है कि, असंस्कृत शब्दोंकों जब समारके रचे तिसका नाम संस्कृत है; सो पाठ लिखते हैं. ॥ प्राकृतसंस्क्रतमागधपिशाचभाषाश्च शूरसेनी च। षष्ठोत्र भूरि भेदो देशविशेषादपभ्रंशः ॥ १२॥ - प्राकृतेति । सकल जगज्जंतूनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कारः सहजो वचनव्यापारः प्रकृतिः। तत्र भवं सैव वा प्राकृतम् | 'आरिसवयणे सिद्धं देवाणं अद्धमागहावाणी' इत्यादि वचनाद्वा प्राक् पूर्व कृतं प्राकृतं बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिबंधनभूतं वचनमुच्यते । मेघनिर्मुक्तजलमिवैकस्वरूपं तदेव च देशविशेषात् संस्कारकरणाच्च समासादितविशेषं सत् संस्कृतायुत्तरभेदानाप्नोति । अत एव शास्त्रकृता प्राकृतमादौनिर्दिष्टं तदनुसंस्कृतादीनि । पाणिन्यादिव्याकरणोदितशब्दलक्षणेन संस्करणात् संस्कृतमुच्यते । इत्यादि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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