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सम्यक्त्वशल्योद्धार
परंतु फक्त समग्र सूत्र लिखे हुए नहीं थे, सो वीर निर्वाण के ९८० वर्ष पीछे लिखे गए । आखिर में हम तुम को इतना ही पूछते हैं कि तुम जो कहते हो कि श्री वीर निर्वाण के बाद (९८०) वर्ष सूत्र पुस्तकारूढ हुए हैं, सो किस आधार से कहते हो ? क्योंकि तुम्हारे माने बत्तीस सूत्रों में तो यह बात ही नहीं है।
तथा जेठमल लिखता है कि " अठारह लिपि अक्षर रूप वंदनीय मानोगे तो तुम को पुराण कुरान वगैरह सर्व शास्त्र वंदनीय होंगे ।" उत्तर-श्रीनंदिसूत्र में अक्षर को श्रुतज्ञान कहा है, और ज्ञान नमस्कार करने योग्य है; परंतु उस में कहा भावार्थ - वंदनीय नहीं है । श्रीनंदिसूत्र में कहा है कि अन्य दर्शनियों के कुल शास्त्र जो मिथ्या श्रुत कहाते हैं, वे यदि सम्यग्दृष्टि के हाथ में हैं तो सम्यकशास्त्रही हैं। और जैनदर्शन के शास्त्र यदि मिथ्यादृष्टि के हाथ में है तो वे मिथ्याश्रुत ही हैं । इस वास्ते अक्षरवंदना करने में कुछ भी बाधक नहीं है । और जेठमल ने लिखा है कि - " जिनवाणी भावश्रुत है।" परंतु यह लिखना मिथ्या है, क्योंकि जिनवाणी को श्रीनंदिसूत्र में द्रव्यश्रुत कहा है और श्रीभगवती सूत्र में " नमो सुअदेवयाए" इस पाठ कर के गणधरदेव ने जिनवाणी को नमस्कार किया है। वैसे ही ब्राह्मीलिपि नमस्कार करने योग्य है, जैसे जिनवाणी भाषा वर्गणा के पुद्गल रूप से द्रव्य है, वैसे ब्राह्मीलिपि भी अक्षररूप से द्रव्य है। ___अरे ढूंढको ! जब तुम आदिकर्ता को नमस्कार करने की रीति स्वीकार करते हो, तो तीर्थंकरों के आदिकर्ता उनके मातापिता हैं, उन को नमस्कार क्यों नहीं करते हो ? अरे भाइयो ! जरा ध्यान दे कर देखो तो ऊपर कुल दृष्टांतों से "नमो बंभीए लीवीए" का अर्थ ब्राह्मीलिपि को नमस्कार हो ऐसा ही होता है । इस वास्ते जरा नेत्र खोल के देखो, जिस से तीर्थंकर गणधर की आज्ञा के लोपक न बनो। इति । १५. जंघाचारण विद्याचारण साधुओं ने जिनप्रतिमा वांदी है :
पंदरहवें प्रश्नोत्तर में जेठमल लिखता है कि " जंघाचारण तथा विद्याचारण मुनियों ने जिनप्रतिमा नहीं वांदी है" यह लिखना सर्वथा असत्य है, क्योंकि श्रीभगवतीसूत्र शतक २० उद्देशे ९में जंघाचारण तथा विद्याचारणमुनियों का अधिकार है, उसमें उन्हों ने जिनप्रतिमा वांदी है । ऐसे प्रत्यक्ष रीति से कहा है उसमें से थोडासा सूत्रपाठ इस ठिकाने लिखते हैं, यत --- ___ जंघाचारस्स णं भंते तिरियं केवइए गति विसए पन्नत्ता गोयमा से णं इत्तो एगेणं उप्पारणं रुअगवरे दीवे समोसरणं करेइ करइत्ता तहिं चेइआई वंदइ वंदइत्ता तओ पडिनियत्तमाणे बीइएणं उप्पएणं णंदीसरे दीवे समोसरणं करेइ तहिं चेइआई वंदइ वंदइत्ता इहमागच्छइ इह चेइयाई वंदइ जंघाचारस्स णं गोयमा तिरियं एवइए गतिविसए पन्नत्ता । जंघाचारस्स णं भंते उढ्ढं केवइए गई विसए पन्नत्ता गोयमा से
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