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फिर जेठा लिखता है " भगवंत के समवसरण में जब देवानंदा आई तब प्रभु ने कहा है कि "मम अम्मा" अर्थात् मेरी माता, परंतु कहीं भी मेरी प्रतिमा ऐसे नहीं कहा है।" उत्तर-अरे मूर्ख ! प्रभु को कारण विना बोलने की क्या जरूरत थी ? देवानंदा तो अपने पास आई तब श्रीगोतमस्वामी के पूछने से मेरी माता ऐसे कहा है, वैसे ही भगवंत की प्रतिमा को प्रभु के पास कोई लाया होता तो प्रभु " मम पडिमा" ऐसे भी कहते इस में क्या आश्चर्य है ?
फिर जेठा लिखता है " नमूना तो बहुत वस्तुओं में से थोडी दिखानी उस का नाम है" परंतु मूढ जेठे ने विचार नहीं किया है कि उस को तो लोकभाषा में 'बनगी' कहते हैं, और नमूना तो मूल वस्तु जैसी हो वैसी दिखानी उस को कहते हैं, जैसे वीतराग भगवंत शांतमुद्रा सहित पर्यंक आसने विराजते थे, वैसे शांतमुद्रा सहित जो प्रतिमा उस को नमूना कहते हैं, और सो शास्त्रोक्त विधि से वंदना पूजा करने योग्य है, और कहा भी है कि "जिण-पडिमा-जिनं प्रतिमातीति जिनप्रतिमा" अर्थात् जो जिनेश्वर देब के आकार को दिखलावे उस का नाम जिन प्रतिमा है । और प्रतिमा शब्द तुल्यवाची है, | परंतु ढूंढकों को व्याकरण के ज्ञानरहित होने से उसकी खबर कैसे होवे ? मढने लिखा है कि " स्त्री का नमना स्त्री. परंत पतली नहीं उसका उत्तर - श्रीदशवैकालिकसूत्र में कहा है कि जिस मकान में स्त्री का चित्राम हो उस मकान में साधु नहीं रहे तो जेठमल के लिखने मुताबिक सो स्त्री का नमूना नहीं है । उस में कामादि गण नहीं है तो फिर साधु को न रहने का क्या कारण है ? परंतु अरे ढुंढको ! पूतली है सो स्त्री का नमूना ही है, और उस को देखने से कामादिक दोष उत्पन्न होते हैं, इस वास्ते उस मकान में रहने की साधु को शास्त्रकार की आज्ञा नहीं है। इस वास्ते जेठमल का लिखना बिलकुल झूठ है
यदि नमूना देख के नाम याद न आता हो तो अपने पिता के विरह में उस की मूर्ति से वह याद क्यों आता है ? तथा तुम ढूंढिये लोग नरक के, देवलोकों के, जंबूद्वीप के, अढाईद्वीप के, लोक नालिका वगैरेह के चित्र लोगों को दिखाते हो, सो देख के देखने वाले को त्रास क्यों पैदा होता है ? सुख की इच्छा क्यों होती है ? जंबूद्वीपादि पदार्थों का ज्ञान क्यों होता है ? परंतु तुम्हारा लिखना स्वकपोलकल्पित है,
त तो खरी है कि प्रभ की शांत मद्रा वाली प्रतिमा को देख के भव्य जीवों के विषयकषाय उपशम भाव को प्राप्त हो जाते हैं; और उसको प्रणाम, नमस्कार, पूजादि करने से भारी सुकृत का संचय होता है । ___तथा जेठा लिखता है कि " वीतरागदेव का नमूना साधु, परंतु प्रतिमा नहीं ।" उत्तर-अरे मूढ़ ढूंढको ! वीतरागदेव का नमूना साधु नहीं हो सकता है, क्योंकि वीतराग देव रागद्वेषरहित है, और साधु रागद्वेषसहित है। साधु रजोहरण, मुहपत्ती, पात्रे, झोली
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