________________
जिनके हृदयकमल की अदम्य इच्छा, अंतःकरण के अनहद आशीर्वाद
और लगातार बरसती कृपा-वर्षा के जिस त्रिवेणी संगम से
इस ग्रंथ का सम्पादन-प्रकाशन शक्य बना, ऐसे सुविशालगच्छाधिपति, व्याख्यान-वाचस्पति, सन्मार्गदर्शक, पू. आ. भ.
श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा