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________________ प्रकाशकीय जिनशासन के जवाहीर, भारतवर्ष के भूषण, गुजरात के गौरव और महाराष्ट्र के जो मुगुटमणि थे ऐसे सुविशालगच्छाधिपति - व्याख्यानवाचस्पति- स्वर्गीय - पूज्यपाद | आचार्यदेव श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा की अप्रतिम कृपा और शुभाशीष से सज्ज्ञान की आराधना में आगे बढ़ते हुए हमारे पार्श्वाभ्युदय प्रकाशन नामक ट्रस्ट द्वारा, जिनकी आज जिनशासन में स्वर्गारोहणशताब्दि मनाई जा रही है ऐसे सूरिपुरंदर | पूज्यपाद श्री आत्मारामजी महाराज विरचित 'सम्यक्त्वशल्योद्धार' ग्रंथ की चतुर्थ | आवृत्ति प्रकाशित की जा रही है वह हमारे लिए परमसौभाग्य की बात है । इस ग्रन्थ के रचयिता महापुरुष पूज्य आत्मारामजी महाराज का जीवन - कवन बहुत ही रोचक और रोमांचक था । 'तपागच्छ के आद्य आचार्यदेव' के नाते वीसवीं | सदी में बहुत ही ख्यातनाम थे । 'सत्य शोध के लिए उत्कंठा और ध्येयप्राप्ति तक संघर्ष का अविरत सामना' उनकी ये दो चीजें हम सब के लिए अनुपम आदर्श हैं । साधु-जीवन की मर्यादा के अखंड उपासक होने पर भी उन्हें प्राप्त आंतरराष्ट्रीय ख्याति यह उनकी अद्भूत विशेषता थी। जिनशासन के विरोधियों को चुनौती देकर उनके मुँह | बंद करने की अजीबगजीब शक्ति के धनी पूज्यश्री ने अनेक तात्त्विक ग्रन्थों का निर्माण किया था जो उन्हीं की 'परमविद्वत्ता' के साक्षीरूप हैं । वीसवीं सदी के युगपुरुष समान इस पवित्र आत्मा की इस साल (सं. २०५२) ज्येष्ठ शुक्ल दि. २६-५-९६ रविवार के दिन स्वर्गारोहण - शताब्दि आ रही है, इस प्रसंग की स्मृति के लिए एक महामूल्य कर्तव्यरूप ' श्रीमद्विजयानन्दसूरिस्वर्गारोहण शताब्दि स्मारक ग्रन्थ संस्करण श्रेणि' के अंतर्गत उनके द्वारा रचित प्रत्येक ग्रन्थों को ऑफसेट मुद्रण में पुनः प्रकाशित करने का शुभ निर्णय हमारे ट्रस्ट ने किया है, उसी के अनुसंधान में पहला पुस्तक 'जैनतत्त्वादर्श' तीन बरस पहले प्रकाशित हो गया । आज | 'सम्यक्त्वशल्योद्धार' यह दूसरे ग्रन्थरत्न का प्रकाशन करते हुए हमें बहुत ही आनंद की अनुभूति हो रही है । हमारे इस कार्य के प्रेरक बल यदि कोई है तो वे जिनशासन के ज्योतिर्धर स्व. पू. आ.भ. श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा है। उन्होंने ही एकबार बातचीत दरम्यान पू. आ.भ. श्रीमद्विजय पुण्यपालसूरीश्वरजी म. को कहा था कि 'पूज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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