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(२१) में प्रश्न में लिखा है " पुस्तक पात्र बेचते हो" इस का उत्तर
हमारा कोई भी साधु यह काम नहीं करता है, करे तो वह साधु नहीं, परंतु मुंह | बंधे ढूंढक और ढूंढकनियां करती हैं, दृष्टांत १. अजमेर में ढूंढनियां रोटियां बेचती हैं। २. जयपुर में चरखा कांतती हैं ३. बलदेव गुलाब नंदराम और उत्तमचंद प्रमुख रिख कपडे बेचते हैं ४. भियाणी में नवनिध ढूंढक दुकान करता है ५. दिल्ली में गोपाल ढूंढक हुक्के का तमाकु बना के बेचता है ६. बीकानेर और दिल्ली में ढूंढनियां अकार्य करती हैं ७. कनीराम के चेले राजमल ने कितने ही अकार्य किये सुने हैं । ८. कनीराम का चेला जयचंद दो ढूंढक श्राविकाओं को ले के भाग गया और कुकर्म करता रहा। ९. बोटाद में केशवजी रिख पछम गाम की बनीयानी को ले के भाग गया । यह तुम्हारे ( ढूंढक के ) दया धर्म की उदित उदित पूजा हो रही है ?
(२२) माल उलटावते हो (२३) आधाकर्मी पोसाल में रहते हो (२४) मांडवी (विमान) कराते हो (२५) टीपणी (चंदा) करा के रूपये लेते हो (२६) गौतम पढघा कराते हो यह पांचों प्रश्न असत्य हैं, क्योंकि संवेगी मुनि ऐसे नहीं करते हैं, परंतु २३ में | तथा २४ में प्रश्न मुजब ढूंढकों के रिख करते हैं ।
(२७) संसार तारण तेला कराते हो (२८) चंदन बाला का तप कराते हो, यह दोनों प्रश्न ठीक हैं; जैसे शास्त्रों में मुक्तावलि, कनकावलि, सिंहनिःक्रीडितादि तप लिखे है : | वैसे यह भी तप है, और इस से कर्म का क्षय और आत्मा का कल्याण होता है । (२९) तपस्या करा के पैसा लेते हो (३०) सोना रूपा की निश्रेणी (सीढी) लेते हो (३१) लाखा पड़वा कराते हो, यह तीनों ही प्रश्न मिथ्या हैं ।
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(३२) उजमणा कराते हो लिखा है, सो सत्य है, यह कार्य उत्तम है, क्योंकि यह | श्रावक का धर्म है, और इस से शासन की उन्नति होती है, तथा श्राद्धविधि, संदेहदोलावलि वगैरह ग्रंथों में लिखा है ।
(३३) पूज ढोवराते हो सो श्रावक की करणी है और श्रीजिन मंदिर की भक्ति निमित्त करते हैं ।
(३४) श्रावक के पास मुंडका दिला के डुंगर पर चढते हो । यह असत्य है, क्योंकि अद्यापि पर्यंत किसी भी जैनतीर्थ पर साधु का मुंडका नहीं लिया गया है । (३५) माला रोपण कराते हो । यह सत्य है मालारोपण कराना श्रीमहानिशीथसूत्र में कहा है ।
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जगरांवा जिला लुधियाना में रूपचंद के दो साधु और अमरसिंह की साध्वी का संयोग हुआ और आधान रह गया सुना है, तथा बनूड में एक साधु ने अपना अकार्य गोपने के वास्ते छप्पर को आग लगा दी ऐसे सुना है और समाणें में एक ढूंढक साधु को अकार्य की शंका से श्रावको ने बारी में बैठने से रोक दिया पट्टी में एक परमानंद के चेले के अकार्य से ढूंढक श्रावक रात्रि के वक्त थानक को ताला लगाते थे ।
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