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सम्यक्त्वशल्योद्धार
नाम बदलकर दूसरा अच्छा नाम रखना'
(४) चौथे प्रश्न में लिखा है कि "कान पड़वाते हो" उत्तर यह लेख मिथ्या है क्योंकि हम कान पडवाते नहीं हैं कान तो कान फटे योगी पड़वाते हैं ।
(५) खमासमणे वहोरते हो (६) घोडा रथ बैहली डोली में बैठते हो (७) गृहस्थ के घर में बैठ के वहोरते हो (८) घरों में जाके कल्पसूत्र बांचते हो (९) नित्यप्रति उस ही घर वहोरते हो (१०) अंघोल करते हो (११) ज्योतिष निमित्त प्रयुंजते हो (१२) कलवाणी कर के देते हो (१३) मंत्र, यंत्र, झाडा, दवाई, करते हो। इन नव प्रश्नों के उत्तर में लिख ने का कि जैन मुनियों को यह सर्व प्रश्न कलंक रूप हैं । क्योंकि जैन संवेगी साधु ऐसे करते नहीं हैं, परंतु अंत के प्रश्न में लिखे मुताबिक मंत्र, यंत्र झाडा, दवाई वगैरह ढूंढक साध करते हैं. यथा १. भावनगर में भीमजी रिख तथा चनीलाल २. बरवाला में रामजी रिखा ३. बोटादमें अमरसी रिखा ४. ध्रांगध्रा में शामजी रिख वगैरह मंत्र यंत्र करते है। यंत्र लिख के धुलाके पिलाते हैं। कच्चे पानीकी गडवियां मंत्र कर देते हैं । अपने तरफ से दवाई की पुडियां देते हैं। बच्चों के शिर पर रजोहरण फिराते है वगैरह सब काम करते हैं। इस वास्ते यह कलंक तो ढूंढकों के ही मस्तकों पर है (१४) में प्रश्न में जो लिखा है, सो सत्य है क्योंकि व्यवहारभाष्य श्राद्धविधिकौमुदि आदि ग्रंथो में गुरु को समेला कर के लाना लिखा है और ढूंढक लोग भी लाने वक्त और पहुंचाने वक्त वाजिंत्र बजवाते हैं ।। भावनगर में गोबर रिख के पधारने में और रामजी ऋष के विहार में वाजिंत्र बजवाये थे और इस तरह अन्यत्र भी होता है । __(१५) में प्रश्न में " लङ्कप्रतिष्ठा ते हो" लिखा है सो असत्य है।
(१६) सात क्षेत्रों निमित्त धन कढाते हो (१७) पुस्तक पूजाते हो (१८) संघ पूजा कराते हो और संघ कढाते हो (१९) मंदिर की प्रतिष्ठा कराते हो (२०) पर्दूषणा में पुस्तक दे के रात्रिजागा कराते हो यह पांच प्रश्न सत्य हैं क्योंकि हमारे शास्त्रों में इस रीति से करना लिखा है। जैसे ढूंढकदीक्षा ढूंढकमरण में तुम महोत्सव करते हो ऐसे ही हमारे श्रावक देवगुरु संघ श्रुत की भक्ति करते हैं । और इस करने से तीर्थंकर गोत्र बांधता है. यह कथन श्रीज्ञातासूत्र बगैरह शास्त्रों में है। इस को देखा के तुम्हारे पेट में क्यों शूल उठता है ? इन कामों में मुनि का तो उपदेश है, आदेश नहीं।
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र के नव में अध्ययन में लिखा है कि नमिराजर्षि प्रत्येक बुद्ध की माता मदनरेखा ने जब दीक्षा धारण करी तब उस का नाम सुव्रता स्थापन किया सो पाठ यह है : तीएवि तासि
साहुणीणं समीवे गहिया दिक्खा कयसुव्वयनामा तवसंजमं कुणमाणी विहरइ इत्यादि । २ सवलपिंडी शहर में पार्वती ढूंढनी के चौमासे में दर्शनार्थ आए बाहरले भाइयों को
महोत्सवपूर्वक नगर में शहर वाले लाये थे तथा हुशियारपुर में सोहनलाल ढूंढक के चौमासे में भोनी के परिवार में पुत्रोत्पत्ति के हर्ष में महोत्सवपूर्वक स्वामीजी के दर्शनार्थ आए थे पुत्र को 'चरणों पर लगा के लङ बांट के बडी खुशी मनाई थी।
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