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सवैया
फागण जो फूली वारी मिली वाणी सुधा प्यारी फली सम्यक् उजारी ज्ञान बन सरकाईये, नैन जैन के जगावो संग सुगुरु का चावो वाना मर्म युत पावो नैन नींद की खुलाईये, साखी सूतर की दाखी कछु निंदिया न भाखी जेडे जैन अभिलाषी साखी भाखी न भूलाईये । करो सुगुरु संगाई रूप शिक्षा वरताई कुछ डरो न डराई दास खुशी मन भाईये ।। १२ ।। कुंडली छंद
दरवदरव सब जग दिसे भाव दिसे नहीं सोय विना दरव थी ज्ञान कब ज्ञान दरव थी होय, ज्ञान दरव थी होय दरव मुनि धार चरित्तर, दरव सामायक ठवें दरव पूजा इम मितर, अंत भाव जिन केवली जानें मन की सरव, भावचिह्न कछु नहि दिसे दिसे जगत सब दरव । सवैया
मास आदित्य आनंद ऐसे संवत का छंद भूत वन्ही गह चंद्र कृष्ण त्रोदशी वैशाख की । आदि अंत से विचार सबी दोष वमडार भव्य सूतर आधार वानी सुधारस चाषकी । सुमत बन सर की कुमतमत हर की युगत ज्ञान कर की भली हे शुभ भाष की । छोड झूठते जंजाल धरसूत्रमें ख्याल शहर गुजराजोवाल दास खुशी कहे लाषकी । कुंडली छंद
देख कुमति मन खिजो मत करो न रोस गुमान जैसा सूत्रमें कहा तैसा दियो बखान, तैसा दिया बखान जास नर मरम न भासे, करे सुगुरु का संग नैन जग संसै नासै । पक्षपात तज देखिये खुशी सूतर की रेख, जिनआज्ञा धर भाल पर खिजो न कुमति देख ।
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सम्यक्त्वशल्योद्धार
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