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सवैया वैसाख वीसरो ना भाई प्रीत पूजा की बनाई पूजा मोक्ष की सगाई सब सूत्र की सेली है, चंवा मोतिया खेली कुंगु चंदन घसे ली प्रभु पूजो मन मेली पूजा मोक्ष की सहेली है, वीतराग जो बखानी प्राणी भव्य मन मानी वाणी सूतरमें ठानी पूजे धन सो हथेली है, जैसे मेघमें पपिया पिया पिया बोले जिया छप्पे किरले खुडिया पूजा दुष्ट नुं दुहेली है ।।२।।
कुंडली छंद मानो आज्ञा धर्म जिन आज्ञाधर्मसुमीत, जो आज्ञा हृदये धरे सो समति की रीत. सो सुमति की रीत नीत उववाई भाषी, श्रावक घणे प्रमाण नगरी चंपा जी दासी, जिनमंदिर जिनचैत्य घणे विध पूजा ठानो, अर्थ सूत्र नित सुनो धर्म जिनआज्ञा मानो ।
सवैया देख जेठ की जुदाई पाठ रख दे छिपाई करें कूड की कमाई राह उलटा बतांव दे, रुलें पापी सो अपार करें खोटा जो आचार वगी धरमकी मार साध श्रावक कहां वदे, झूठे बैन कहे जग सेवका से लैंदे ठग सठ हठ कठ झग प्रभु मनमें न लाव दे, जैसे रवि का प्रकाश नरनारी से हुलास नैन उल्लू के विनाश देख पूजा नस जावंदे ।।३।।
कुंडली छंद छाया जिनतरु बैठ के काटे तरु अविनीत, पूजा से हिंसा कहे उलटी पकडे रीत, उलटी पकडे रीते धीठ दुर्गति को जावें, पभु मुख से वो चोर अर्थ सत्र नहीं पावें. जिनपडिमा स्वीकार उपासकदसा बताया. श्रावक देख अनंद बैठ के तरु जिम छाया ।
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