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________________ मुख बांधते हैं। और वह विरुद्धाचरण के सेवन करने वाले सिद्ध होते हैं। __ जेठा लिखता है "जो गोतमस्वामी ने मस वक्त ही मुंहपत्ती बांधी तो पहिले क्या खूले मुख से बोलते थे ? " उत्तर - अकल के दुश्मन ढूंढियों में इतनी भी समझ नहीं है कि उघाडे (खूले) मुख से बोलते थे ऐसा हम नहीं कहते हैं, परंतु हम तो मुंहपत्ती मुख के आगे हस्त में रख कर यत्नो से बोलते थे ऐसे कहते हैं । श्रीअंगचूलियासूत्र में दीक्षा के समय मुंहपत्ती हाथ में देनी कही है, यतः तओ सूरिहं तदानुणएहिं पिट्टोवरि कूपरि विठिएहिं रयहरणं ठावित्ता वामकरानामियाए मुहपत्तिलवं धरित्तु ।। ___ अर्थ - तब आचार्य की आज्ञा के होते हुए कूणी ऊपर रजोहरण रखे । रजोहरण की दशियां दक्षिण दिशी (सजे पासे) रखे, और वामें हाथ में अनामिका अंगुलि ऊपर ला के मुंहपत्ती धारण करे।। __पूर्वोक्त सूत्र में सूत्रकारने मुहपत्ती हाथ में रखनी कही है, परंतु मुंह को बांधनी नहीं कही है, ढूंढिये मुंहपत्ती मुंह को बांधते हैं इसलिये जिनाज्ञा के बाहिर हैं । श्रीआवश्यकसूत्र में तथा ओघनियुक्ति में (कायोत्सर्ग करने की विधि में) कहा है कि "मुंहपोत्तियं उजु हत्थे" अर्थात् मुखवस्त्रिका दाहिने हाथ में रखनी, इस तरह कहा है, तो भी ढूंढिये सदा मुंह को मुखपाटी बांध के फिरते हैं । इस वास्ते वे मूर्खशिरोमणि हैं। ___ ढूंढिये मुंह को मुखपाटी बांध के कुलिंगी बनने से जैनमत के साधुओं की निंदा और हँसी कराते हैं । यदि वायुकाय की रक्षा वास्ते मुंह को पाटी बांधते हैं तो नाक तथा गुदा को पाटी क्यों नहीं बांधते हैं ? जेठा लिखता है कि "जितना पलता है उतना पालते हैं"। जब ढूंढिये जितना पले उतना पालते हैं तो मुख से तो ज्यादा नाक से वायुकाय के जीव हन जाते हैं। क्योंकि मुख से जब बोले और मुख की पवन बाहिर निकले तब ही वायुकाय की हिंसा का संभव हो सकता है । और नाक से तो व्यवधान रहित निरंतर श्वासोच्छ्वास बहा करता हैं। इस वास्ते मुंह को बांधने से पहले नाक को पट्टी क्यों नहीं बांधी ? और साध के तो ६ काया की हिंसा करने का विविध त्रिविध पच्चक्खाण होता है । तथापि जेठे के लिखे मुताबिक जब इतना भी पाल नहीं सकते हैं तो किस वास्ते चारित्र लेकर ऋषिजी बन बैठे हैं ?। ढूंढियो ! इससे तो तुम अपने मत से चारित्र की विराधना करने वाले सिद्ध होते हो। तथा ढूंढियों के ऋषि - साधु को मुंह को मुखपाटी बांधा हुआ कौतुकी वेष देखकर किसी दो वक्त पशु डरते हैं, स्त्रियाँ डरती हैं, बालक डरते हैं, कुत्ते भौंकते हैं और मुंह को सदा पट्टी बांधने से असंख्याते सन्मूछिम जीव मरते हैं, निगोदीये जीव उत्पन्न होते हैं, इस से यह मालूम होता है कि ढूंढियों ने जीवदया के वास्ते मुखपट्टी नहीं बांधी है किंतु जीवहिंसा करने वाला एक अधिकरण (शस्त्र) बांधा है इस बाबत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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