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की प्राप्ति नहीं हुई। किंतु हिंसा के फल की प्राप्ति हुई । इस वास्ते यह समझना, कि | जिनाज्ञा विना की दया तो स्वरूपे दया है, परंतु अनुबंधे तो हिंसा ही है, और इसी | वास्ते जमालि की दया साफल्यता को प्राप्त नहीं हुई । तो अरे ढूंढियों ! उस सरीखी | दया तुम से पलती नहीं है, मात्र दया दया मुख से पुकारते हो । परंतु दया क्या है सो नहीं जानते हो, और भगवंत के वचन तो अनेक ही लोपते हो । इस वास्ते तुम्हारा निस्तार कैसे होगा सो विचार लेना ?
॥ इति ॥
२८. द्रव्यनिक्षेपा वंदनीय है इस बाबत :
अठ्ठाइस में प्रश्नोत्तर में "द्रव्यनिक्षेपा वंदनीय नहीं है" ऐसे सिद्ध करने वास्ते जेठमल लिखता है कि "चौबीसत्थे में जो द्रव्य जिन को वंदना होती हो तो वह तो चारों गतियों में अविरती अपच्चक्खाणी हैं, उन को वंदना कैसे होवे ?" । उत्तर श्री ऋषभदेव के समय में साधु चौबीसत्था करते थे । उस में द्रव्यतीर्थंकर तेइस को | तीर्थंकर की भावावस्था का आरोप करके वंदना करते थे । परंतु चारों गति में जिस | अवस्था में थे उस अवस्था को वंदना नहीं करते थे ।
जेठमल लिखता है कि "पहिले हो चूके तीर्थंकरों के समय में चौबीसत्था कहने वक्त जितने तीर्थंकर हो गये और जो विद्यमान थे उतने तीर्थंकरों की स्तुति वंदना करते थे"। | जेठमल का यह लिखना मिथ्या है। क्योंकि चौबीसत्थे में वर्त्तमान चौबीसी के चौबीस | तीर्थंकर के बदले कम तीर्थंकर को वंदना करे ऐसा कथन किसी भी जैनशास्त्र में नहीं है ।
जेठमल लिखता है, कि श्रीअनुयोगद्धारसूत्र में आवश्यक के ६ अध्ययन कहे हैं । उन में दूसरा अध्ययन उत्कीर्त्तना नामा है तो उत्कीर्त्तना नाम स्तुति वंदना करने का है सो किस का उत्कीर्तन करना ? इसके उत्तर में चौबीसत्था अर्थात् चौबीस तीर्थंकर का करना ऐसे समझना, परंतु जेठे अज्ञानी के लिखे मुताबिक चौबीस का मेल नहीं है ऐसे नहीं समझना, क्योंकि चौबीस न हो तो चौबीसत्था न कहा जावे ।
ऊपर लिखी बात में दृष्टांत तरीके जेठमल लिखता है कि "श्रीमहाविदेह में एक तीर्थंकर की स्तुति करे चौबीसत्था होता है" यह लिखना जेठमल का बिलकुल ही | अकल बिना का है, क्योंकि इस मुताबिक किसी भी जैनसिद्धांत में नहीं कहा है । | और महाविदेह में चौवीसत्था भी नहीं है । क्योंकि वहां तो जब साधु को दोष लगे तब पडिक्कमते हैं । इस से जेठमल का लेख स्वमतिकल्पना का है परंतु शास्त्रोक्त नहीं ऐसे सिद्ध होता है । इस बाबत बारहवें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिख के द्रव्यनिक्षेपा | वंदनीय सिद्ध किया है ।
।। इति ।।
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