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की यात्रा करने को गए ऐसे कहा है ।।
१७. इसी सूत्र के २९ में अध्ययन में "थय थूइ मंगल" में थापना को वंदना कही है।
१८. श्रीनंदि सूत्र में विशाला नगरी में श्रीमुनिसुव्रतस्वामी का महाप्रभाविक थूभ कहा है।
१९. श्रीअनुयोगद्धारसूत्र में थापना माननी कही है। २०. श्रीआवश्यकसूत्र में भरत चक्रवर्तीने जिनमंदिर बनवाया उस का अधिकार है। २१. इसी सूत्र में वग्गुर श्रावकने श्रीमल्लिनाथजी का मंदिर बनवाया । २२. इसी सूत्र में कहा है कि फूलों से जिनपूजा करे तो संसारक्षय होगा।
२३. इसी सूत्र में कहा है कि प्रभावती श्राविका (उदायन राजा की रानी) ने जिनमंदिर बनवाया तथा जिनप्रतिमा के आगे नाटक किया ।
२४. इसी सूत्र में कहा है कि श्रेणिक राजा एकसौ आठ (१०८) सोने के जव नित्य नये बनवा के उसका जिनप्रतिमा के आगे स्वस्तिक करता था।
२५. इसी सूत्र में कहा है कि साधु कायोत्सर्ग में जिनप्रतिमा की पूजा की अनुमोदना करे।
२६. इसी सूत्र में कहा है कि सर्व लोक में जो जिनप्रतिमा हैं उन की आराधना निमित्त साधु तथा श्रावक कायोत्सर्ग करे ।
२७. श्रीव्यवहारसूत्र में प्रथम उद्देशे जिनप्रतिमा के आगे आलोयणा करनी कही है।
२८. श्रीमहानिशीथसूत्र में जिनमंदिर बनवावे तो श्रावक उत्कृष्टा बारहवें देवलोक | पर्यंत जावे ऐसे कहा है।
२९. श्रीमहाकल्पसूत्र में जिनमंदिर में साधु श्रावक वंदना करने को न जावे तो प्रायश्चित्त लिखा है। ___३०. श्रीजीतकल्पसूत्र में भी प्रायश्चित्त लिखा है।
३१. श्रीप्रथमानुयोग में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने जिनमंदिर बनवाए तथा पूजा की ऐसा अधिकार है।
इत्यादि सैंकडो ठिकाने जिनप्रतिमा की पूजा करने का तथा जिनमंदिर बनवाने वगैरह का खुलासा अधिकार है । और सर्व सूत्र देख के सामान्य रूप से विचार करने से भी मालूम होता है कि चौथे आरे में जितने जिनमंदिर थे उतने आजकल नहीं हैं। क्योंकि सूत्रों में जहां जहां श्रावकों के अधिकार है वहां वहां "ण्हायाकयबलिकम्मा" अर्थात् स्नान करके देवपूजा की ऐसा प्रत्यक्ष पाठ है । इस से सर्व श्रावकों के घर में जिनमंदिर थे और वे निरंतर पूजा करते थे ऐसे सिद्ध होता है । तथा दशपूर्वधारी के श्रावक संप्रति राजा ने सवा लाख जिनमंदिर और सवाक्रोड जिनबिंब बनवाए हैं । जिन में से हजारों जिनमंदिर और जिनप्रतिमा अद्यापि पर्यंत विद्यमान हैं । रतलाम, नाडोल
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