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___ यदि ढूंढिये बत्तीस सूत्रों को परस्पर अविरोधी जान के मान्य करते हैं, और अन्य सूत्र | तथा ग्रंथों को विरोधी मान के नहीं मान्य करते हैं तो उपर लिखे विरोध जो कि बत्तीस सूत्रों के मूलपाठ में ही हैं उन का नियुक्ति तथा टीका आदि मदद के बिना निराकरण कर देना चाहिये । हम को तो निश्चय ही है कि ढूंढिये जो कि जिनाज्ञा से पराङ्मुख हैं वे इन का निराकरण बिलकुल नहीं कर सकते हैं । क्योंकि इन में कोई तो पाठांतर, कोई अपेक्षा, कोई उत्सर्ग, कोई अपवाद, कोई नय, कोई विधिवाद, और कोई चरितानुवाद इत्यादि सत्रों के गंभीर आशय हैं उन को तो समद्र सरीखी बद्धि के धनी टीकाकार आदि ही जानें और कुल विरोधों का निराकरण कर सकें, परंतु ढूंढियों ने तो फक्त जिन प्रतिमा के द्वेषसे सर्व शास्त्र उत्थापे हैं तो इन का निराकरण कैसे कर सके ? । इति । २६. सूत्रों में श्रावकों ने जिनपूजा की कहा है इस बाबत :
२६ में प्रश्नोत्तर में जेठमल लिखता है कि "सूत्र में किसी श्रावक ने पूजा की नहीं कहा है"। उत्तर - जेठमल ने आंखें खोल के देखा होता तो दीख पड़ता कि सूत्रों में तो ठिकाने २ पूजा का और श्रीजिनप्रतिमा का अधिकार है । जिन में से कुछ अधिकारों की सुचि (फैरिस्त) दृष्टांत तरीके भव्य जीवों के उपकार निमित्त यहां लिखते हैं।
श्रीआचारागसूत्र में सिद्धार्थ राजा को श्रीपार्श्वनाथ का संतानीय श्रावक कहा है। उन्हों ने जिनपूजा के वास्ते लाख रूपैये दिये तथा अनेक जिन प्रतिमा की पूजा की ऐसे कहा है । इस अधिकार में सूत्र के अंदर "जायेअ" ऐसा शब्द है जिस का अर्थ याग (यज्ञ) होता है और याग शब्द देवपूजावाची है "यज-देवपूजाया मिति वचनात्" तथा उन को श्रावक होने से अन्य याग का संभव होवे ही नहीं
इस वास्ते उन्हों ने जिनपूजा की है यही बात निःसंशय है? २. श्रीसूयगडांगसूत्र - नियुक्ति - में जिनप्रतिमा को देख कर आर्द्र कुमार
प्रतिबोध हआ और जब तक दीक्षा अंगीकार नहीं की तब तक उस की पूजा
की ऐसा कथन है। ३. श्रीसमवायांगसूत्र में समवसरण के अधिकार वास्ते कल्पसूत्र की भलावणा दी
कितनेक बेसमझ, वाचनकला से शून्य और शास्त्रकार के अभिप्राय से अज्ञ ढूंढिये इस ठिकाने कतर्क करते हैं कि "आत्मारामजी ने लिखा है कि सिद्धार्थ राजा ने पूजा की यह कथन आचारांगसूत्र में है सो झूठ है, क्योंकि आचारांग में यह कथन नही है"। इस का उत्तर - जो| आप झूठा होता है उस को सारा जगत् ही झूठा प्रतीत होता है, क्योंकि श्रीआत्मारामजी के पूर्वोक्त लेख्न में तुम्हारे कहे मुताबिक लेखा ही नहीं है, उन के लेख्न में तो सिद्धार्थ राजा को श्रावक सिद्ध करने वास्ते श्रीआचारांगसूत्रा का प्रमाण दिया है। - जो कि उन के "श्री आचारांगसूत्र में सिद्धार्थ राजा को श्रीपार्श्वनाथ का संतानीय श्रावक कहा है" इस लेख से जाहिर होता है, और पूजा के वास्ते उन्हों ने लाख रूपैये दिये इत्यादि जो वर्णन है सो श्रीदशाश्रुतस्कंध के आठ में अध्ययन के अनुसार है क्योंकि उन्हों ने "जायेअ" यह पाठ लिखा है, सो श्रीदशाश्रुतस्कघसूत्रा के आठवें अध्ययनकल्पसूत्र में खुलासा है इस वास्ते तुम्हारा कहना झूठ है,
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