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________________ १३२ सम्यक्त्वशल्योद्धार उत्तराध्ययन में अंतमुहूर्त की कही । ७. श्रीउत्तराध्ययन में लसन' अनंतकाय कहा, और श्रीपन्नवणाजी में प्रत्येक कहा। ८. श्रीपन्नवणासूत्र में चारों भाषा बोलने वाले को आराधक कहा, और |श्रीदशवैकालिकसूत्र में दो ही भाषा बोलनी कहीं। ९. श्रीउत्तराध्ययन में रोगग्रस्त साधु दवाई न करे ऐसे कहा, और श्रीभगवतीसूत्र में प्रभु ने बीजोरापाक दवाई के निमित्त लिया ऐसे कहा । १०. श्रीपन्नवणाजी में अठारहवें कायस्थिति पद में स्त्रीवेद की कायस्थिति पांच प्रकारे कही तो सर्वज्ञ के मत में पांच बातें क्या ? ११. श्रीठाणांगसूत्र में साधु को राजपिंड न कल्पे ऐसे कहा, और अंतगडसूत्र में श्रीगौतमस्वामी ने श्रीदेवी के घर में आहार लिया ऐसे कहा । १२. श्रीठाणांगसूत्र में पांच महा नदी उतरने की मना की, और दूसरे लगते ही सूत्र में हां कही यह क्या ? १३. श्रीदशवैकालिक तथा आचारांगसूत्र में साधु त्रिविध प्राणातिपात का | पञ्चक्खाण करे ऐसे कहा, और समवायांग तथा दशाश्रुतस्कंध में नदी उतरनी| कही यह क्या ? १४. श्रीदशवैकालिक में साधु को लूण प्रमुख अनाचीर्ण कहा, और आचारागसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के पहिले अध्ययन के दशवें उद्देश में साधु को लूण किसी ने विहराया हो तो वह लूण साधु आप खा लेवे, अथवा सांभोगिक को बांटके दे ऐसे कहा, यह क्या ? १५. श्रीभगवतीसत्र में नीम तीखा कहा और उत्तराध्ययन सत्र में कडआ कहा यह क्या ? १६. श्रीज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथजीने (६०८) के साथ दीक्षा ली ऐसे कहा, और श्रीठाणांगसूत्र में छ पुरुष साथ दीक्षा ली ऐसे कहा यह क्या ? १७. श्रीठाणांगसूत्र में श्रीमल्लिनाथजी के साथ ६ मित्रों ने दीक्षा ली ऐसे कहा, और श्रीज्ञातासूत्र में श्रीमल्लिनाथजी को केवलज्ञान होने के बाद ६ मित्रों ने दीक्षा ली ऐसे कहा यह क्या ? १८. श्रीसूयगडांगसूत्र में कहा है कि साधु आधाकर्मिक आहार लेता हुआ कर्मों से लिपायमान होगा भी, और नहीं भी होगा, इस तरह एक ही गाथा में एक दूसरे का प्रतिपक्षी ऐसे दो प्रकार का कथन है, यह क्या ? का मताजिक सूत्रों में भी बहत विरोध हैं परंतु ग्रंथ अधिक हो जाने के भय से नहीं लिख हैं : ो भी जिन को विशेष देखने की इच्छा हो उन्हों ने श्रीमद्यशोविजयोपाध्यायकृत वीरस्तति रूप हंडी के स्तवन का पंडित श्रीपद्मविजयजी का किया बालावबोध देख लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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