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________________ १२३ प्रकरण में तीन समय आहारक कहा है"। उत्तर - श्रीभगवतीसूत्र में भी तीन समय की आहारक की स्थिति कही है । और श्रीभगवतीसूत्र में चार समय की विग्रहगति कही और प्रकरण में पांच समय की उत्कृष्ट विग्रहगति कही । उस का उत्तर - बहुलता से चार समय की विग्रहगति होती है । इस वास्ते सूत्र में ऐसे कहा है । परंतु किसी वक्त पांच समय की भी विग्रहगति होती है । इस वास्ते प्रकरण में उत्कृष्टी पांच समय की कही है। २१. "श्रीसमवायांगसूत्र में आचारांग का महापरिज्ञा अध्ययन नवमा कहा और प्रकरण में सातवाँ कहा"। उत्तर - श्रीसमवायांगसूत्र में विजयमहर्न बारहवाँ कहा है और जंबूद्वीपपन्नत्ति में सत्रहवाँ कहा है सो कैसे ? २२. "श्रीसमवायंगसूत्र के ५४ में समवाय में ५४ उत्तम पुरुष कहे हैं, और प्रकरण में वेसठ ६३ कहे"। उत्तर - समवायांगसूत्र में ही मल्लिनाथजी के ५७ सौ मनपर्यवज्ञानी कहे और ज्ञातासूत्र में आठ सौ कहे यह तो सूत्रों में परस्पर विरोध हुआ सो कैसे ? २३. "श्रीपन्नवणासूत्र में सन्मूर्छिम मनुष्य को सर्व पर्याप्ति से अपर्याप्ता कहा है और प्रकरण में तीन साढे तीन पर्याप्तियां कही हैं"। उत्तर - श्रीपन्नवणासूत्र के पाठ का अर्थ जेठमल को आया नहीं । इस वास्ते उस को विरोध मालम हुआ है । | परंतु यथार्थ अर्थ विचारने से इस बात में बिलकुल विरोध नहीं आता है । २४. "श्रीभगवतीसूत्र में जीव के सर्व प्रदेश में कर्मप्रदेश अनंत कहे हैं और प्रकरण में आठ रुचकप्रदेश उधाडे कहे हैं"। उत्तर - श्रीभगवतीसूत्र में कहा है कि कंपमान प्रदेश कर्म बांधते हैं और अकंपमान प्रदेश कर्म नहीं बांधते हैं । इस वास्ते आठ रुचकप्रदेश अकंपमान हैं और इस कारण से वे उघाडे हैं । २५. "श्रीउत्तराध्ययन में आतप उद्योत आदि विरसा पुद्गल हाथ में न आवें ऐसे कहा है । और प्रकरण में गौतमस्वामी सूर्यकिरणों को अवलंब के अष्टापद पर चढे ऐसे कहा है "। इस का उत्तर - दशमें प्रश्नोत्तर में सविस्तर लिखा गया है। २६ "श्रीठाणांगसत्र में बत्तीस असझाइ कही है और प्रकरण में अस्स तथा चैत्र के महिने में ओली रोली के दिन भी असझाड के कहे हैं"। उत्तर - श्रीठाणांगसत्र में ऐसे नहीं कहा है कि बत्तीस ही असझाइ हैं और अन्य नहीं । इस वास्ते कही बात भी सत्य है। २७. "श्रीअनुयोगद्धार में उच्छेद आंगुल से प्रमाणांगुल हजार गुना कहा है। उस मुताबिक चार हजार गाउ का प्रमाण योजन होता है और प्रकरण में| सोलहसौ (१६००) गाउ का योजन कहा है"। उत्तर - श्रीअनुयोगद्धार में प्रमाणांगुल की सूची हजारगना कहा है । और अंगुल तो चारसो गुना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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