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________________ | कहे और आवश्यक निर्युक्ति में मृगसर सुदि ११ के कहे हैं" उत्तर - यह मतांतर है । ५. "बृहत्कल्पसूत्र में साधु काल करे तो उस को वांस की झोली कर के साधु वन में परठ आवे ऐसे कहा है । और आवश्यक नियुक्ति में साधु पंचक में काल करे तो पांच पुतले डाभ के कर के साधु के साथ जालना ऐसे कहा है" उत्तर - यह सर्व | झूठ है, क्योंकि आवश्यक निर्युक्ति में ऐसा पाठ बिलकुल नहीं है । बृहत्कल्पसूत्र में पूर्वोक्त विधि कही है तो भी ढूंढिये अपने साधुओं को विमान बना कर | लकड़ियों के साथ जलाते हैं सो किस शास्त्रानुसार ? और हमारे श्रावक जो इस | मुताबिक करते हैं सो तो पूर्वाचार्यकृत ग्रंथों के अनुसार करते हैं । ६. "भगवती सूत्र में एक पुरुष को उत्कृष्ट पृथक्त्व लाख पुत्र हो ऐसे कहा है और ग्रंथों में भरत के सवाकोड़ पुत्र कहे हैं" उत्तर- - भगवती सूत्र का पाठ एक स्त्री की अपेक्षा है । बहुत स्त्रियां थी। इस वासी उस के सवाक्रोड़ पुत्र थे यह बात सत्य है भरत के I ७. "भगवतीसूत्र में भगवंत का अपराधी और भगवंत के दो शिष्यों को जलाने वाला ऐसा जो गोशाला उस को भगवंतने कुछ नहीं किया ऐसे कहा है, और संघाचार की टीका में पुलाक लब्धि वाला चक्रवर्ती की सेना को चूज कर दे ऐसे कहा है " | पुलाक लब्धि वाला चक्रवत्ती की सेना का चूर्ण कर ऐसी उस में शक्ति है सौ सत्य है ? भगवंत ने गोशाले को कुछ नहीं किया ऐसे जेठमल कहता है, परंतु भगवंत तो केवल ज्ञानी थे, वह तो जैसे भाविभाव देखें वैसे वर्ते । उत्तर ८. "सूत्र में नारकी तथा देवता को असंघयणी कहा है और प्रकरणों में संघयण मानते हैं" उत्तर देवता में जो संघयण कहा है सो शक्तिरूप है, हाडरूप नहीं; और जो असंघयणी कहा है सो हाड की अपेक्षा है तथा श्रीउववाईसूत्र में देवता को संघयण कहा है, परंतु जेठमल के ह्रदय की आंख में कसर होने से दीखा नहीं होगा । ९. "पन्नवणासूत्र में स्थावर को एक मिथ्यात्व गुणठाणा कहा है और कर्मग्रंथ में दो गुणठाणे कहे है" उत्तर कर्मग्रंथ में दूसरा गणठाणा कहा है सो कदाचित् होता है। और पन्नवणा में एक ही गुणठाणा कहा है सो बहुलता की अपेक्षा है । १०. "श्रीदशनैकालिकसूत्र में साधु के लिये रात्रिभोजन का निषेध है और बृहत्कल्प की टीका में साधु को रात्रिभोजन करना कहा है उत्तर- बृहत्कल्प के मूलपाठमें भी यही बात है, परंतु उस की अपेक्षा गुरुगम में रही हुई है । - - Jain Education International १२१ ११. "श्री ठाणांगसूत्र में शील रखने वास्ते साधु आपघात कर के मर जावे ऐसे कहा है और श्रीबृहत्कल्प की चूर्णि में साधु को कुशील सेवना कहा है। उत्तर- जैनमत के किसी भी शास्त्र में कुशील सेवना नहीं कहा है, परंतु जेठे ढूंठक ने जूठ लिखा है । १ पुलाकलब्धि बाबत प्रश्न लिखने से यह भी मालूम होता है कि इंढिये २८ लब्धियों को भी नहीं मानते होगे अगर मानते हैं तो दिखाना चाहिये कि २८ लब्धियों का क्या २ स्वरूप है और उनमें क्या २ शक्तियां है ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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