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सम्यक्त्वशल्योद्धार
| अनंत गुण है और टीकाकारोंने जो अर्थ किया है सो निर्युक्ति, चूर्णि, भाष्य और गुरुमहाराजा | के बतलाए अर्थानुसार लिखा है । और प्राचीन टीका के अनुसार ही है । इस वास्ते सर्व सत्य है, और चूर्णि, भाष्य तथा निर्युक्ति चौदह पूर्वी और दशपूर्वीयों की की हुई हैं । इस वास्ते | सर्व मानने योग्य है। इस बाबत प्रथम प्रश्नोत्तर में दृष्टांतपूर्वक सविस्तर लिखा गया है। भाष्य, चूर्णि, टीका, ग्रंथ तथा प्रकरणादि को सूत्रविरुद्ध ठहराता है सो उस की मूढ की निशानी है । इस बाबत उस ने (८५) पचासी प्रश्न लिखे हैं। । उन के उत्तर क्रम से लिखते हैं ।
जेठमल ि
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१. " श्रीठाणांगसूत्र में सनतकुमार चक्री अंतक्रिया कर के मोक्ष गया। ऐसे लिखा है, और उस की टीका में तीसरे देवलोक गया ऐसे लिखा है। उत्तर- श्रीठाणांगसूत्र में सनतकुमार मोक्ष गया नहीं, कहा है परंतु उस में उस का दृष्टांत दिया है कि | जीव भारी कर्म के उदय से परिषह वेदना भोग के दीर्घायु पाल के सिद्ध हो, जैसे सनतकुमार, यहां कर्म परिषह वेदना और आयु के दृष्टांत में सनतकुमार का ग्रहण किया है, क्योंकि दृष्टांत एकदेशी भी होता है, इस वास्ते सनतकुमार तीसर देवलोक गया, टीकाकार का कहना सत्य है।
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२. "भगवतीसूत्र में पांचसौ धनुष्य से अधिक अवगाहना वाला सिद्ध न हो ऐसा कहा है। | और आवश्यक निर्युक्ति में मरुदेवी (५२५) सवापांच सौ धनुष्य की अवगाहना वाली सिद्ध हुई ऐसे कहा है" । उत्तर - यह जेठे का लिखना मिथ्या है, क्योंकि | आवश्यक निर्युक्ति में मरुदेवी की सवापांच सौ धनुष्य की अवगाहना नहीं कही है।
३. "समवायांगसूत्र में ऋषभदेव का तथा बाहुबलि का एक सरीखा आयुष्य कहा है, और आवश्यक निर्युक्ति में अष्टापद पर्वत ऊपर श्रीऋषभदेव के साथ एक ही समय में बाहुबलि भी सिद्ध हुआ ऐसे कहा है" । उत्तर - बाहुबलि का आयुष्य ६ लाख पूर्व टूट गया । इस आयु का टूटना सो आश्चर्य है । पंचवस्तु शास्त्र में लिखा है कि दश आश्चर्य तो उपलक्षण मात्र हैं, परंतु आश्चर्य बहुत हैं?
४. "ज्ञातासूत्र में मल्लिनाथ स्वामी के दीक्षा और केवल कल्याणक पोष सुदि ११ के
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यदि ढूंढिये बाहुबलि का श्रीऋषभदेव के साथ एक ही समय में सिद्ध होना नहीं मानते हैं तो उन को चाहिये कि अपने माने बत्तीस सूत्रों में से दिखा देवे कि श्रीबाहुबलि ने अमुक समय दीक्षा ली और अमुक वक्त केवलज्ञान हुआ और अमुक वक्त सिद्ध हुआ तथा श्रीठाणांगसूत्र के दशमें ठाणे में दश अच्छेरे लिखे हैं उनका स्वरूप, तथा किस किस तीर्थकर के तीर्थ में कौनसा २ अच्छेरा हुआ इस का वर्णन, विना नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका और प्रकरणादि ग्रंथो के अपने माने बत्तीस शास्त्रों के मूल पाठ में दिखाना चाहिये, जब तक इन का पूरा २ स्वरूप नहीं दिखाओगें वहां तक तुम्हारी कोई भी कुयुक्ति काम न आवेगी । दश अच्छेरी का पाठ यह है ||
इत्थी तीत्थं अभाविया
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दस अच्छेरगा पण्णत्ता तंजहा ॥ उवसग्ग गब्भहरण
परिसा | कण्हस्स अवरकंका
उत्तरणं चंद सूराणं ॥१॥
चमरुप्पाओ य अठ्ठसयसिद्धा' । अस्संजएसु पूया" दसवि अणतेण
हरिवंसकुलुप्पत्ति काणं ||२||
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