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________________ प्रकाशन / संपादन, जिन श्रीमद् की परम इच्छा- कृपा और आशीर्वाद से आरंभ किया गया है ऐसे शासन के अग्रणी - संघ स्थविर पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय | रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा की उपस्थिति में ही मुझे यह कार्य पूर्ण करना था, लेकिन कुछ संयोगवश मैं शुरू भी नहीं कर सका तो पूर्ण करने की बात क्या रही ? इनका अतीव दुःख होने पर भी पूज्यश्रीजी के वे वचन आज साकार स्वरूप धारण कर रहे हैं, इसका आनंद भी अवर्णनीय है । पूज्यश्री की उपस्थिति में यह कार्य हुआ होता तो पूज्यश्री बहुत ही हर्षान्वित होते यह निश्चित बात है । संपादन कार्य का समग्र यश, मेरे दीक्षा दाता परम गुरुदेव सिद्धांत | महोदधि-सच्चारित्र्यचूडामणि- कर्मसाहित्य निष्णात पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा, प्रेरणा दाता पूज्यश्री तथा सुविशालगच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय महोदय सूरीश्वरजी महाराजा और धर्म तीर्थ प्रभावक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय मित्रानन्दसूरीश्वरजी महाराजा और उनके | शिष्यरत्न मेरे परमतारक पिता गुरुदेव वात्सल्यमहोदधि पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् | विजय महाबलसूरीश्वरजी महाराजा की मुझ पर लगातार बरसती कृपा को ही दिया जा सकता है । इस महाकीय ग्रंथ का संपूर्ण प्रुफ रीडींग आदि करनेवाले अन्तेवासी | मुनिश्री भुवनभूषणविजयजी तथा मुनिश्री वज्रभूषणविजयजी भी श्रुतभक्ति के साथ-साथ परम निर्जरा के भागी बने है तो प्रकाशन कार्य की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेनेवाले | श्री झालावाड जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट- सुरेन्द्रनगर संघ ने अपने ज्ञानद्रव्य में से | इस ग्रंथ का प्रकाशन कार्य करके अनुमोदनीय लाभ लेने के साथ-साथ श्रुत रक्षा का एक सुन्दर कार्य किया है । प्रकाशन संस्था पार्श्वाभ्युदय प्रकाशन का भी यह स्तुत्य प्रयास अभिनन्दनीय है । नास्तिक को भी आस्तिक बनाने वाले इस ग्रंथ के संपादन में | जो स्वाध्याय का परमानन्द मिला है इसका वर्णन मैं कैसे करूँ ? भगवद्भक्ति की सिद्धि-शुद्धि और वृद्धि के लिए अनुपम आदर्श रूप इस ग्रंथ का | पठन सम्यग्दर्शन प्राप्त करने का अपूर्व साधन है । दलील दृष्टांत और आगम प्रमाणों से समृद्ध इस ग्रंथ की पूज्य श्री द्वारा जैन शासन को मिली भेट एक अमूल्य नजराना | है । इस ग्रंथ को चिंतन-मनन-निदिध्यासन से सभी भव्यात्माएँ यथार्थ तत्व समझकर, | यथाशक्ति आचरण करके वे परमतत्व स्वरूप मोक्ष को शीघ्र प्राप्त करे यही शुभेच्छा श्री जैन उपाश्रय सं. २०५२ चै.सु. ९, गुरुवार, दि. २८-३-१९९६ स्वर्गारोहण शताब्दि वर्ष Jain Education International - संगमनेर For Private & Personal Use Only - विजय पुण्यपालसूरि www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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