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________________ ७८ सम्यक्त्वशल्योद्धार और बहुत ठिकाने जिनमंदिर थे ऐसे खुलासा सिद्ध होता है। __ जेठमल ने लिखा है कि "फकत द्रौपदी ने ही पूजा की है और सो भी सारी उमर में| एक ही वार की है" उत्तर - इस कुमति के कथन का सार यह है कि पूजा के अधिकार में स्त्री कही तो कोई श्रावक क्यों नहीं कहा ? अरे मूर्यो के भाई ! रेवती श्राविका ने औषध विहराया तो किसी श्रावक ने विहराया क्यों नहीं कहा ? तथा इस अवसर्पिणी में प्रथम सिद्ध मरुदेवी माता हई। श्रीवीर प्रभ का अभिग्रह पांच दिन कम ६ महिने चंदनबाला ने पूर्ण किया। संगम के उपसर्ग से ६ महिने वत्सपाली बुढिया क्षीर से प्रभु को प्रतिलाभती हुई। तथा इस चौबीसी में श्रीमल्लिनाथजी अनंती चौबीसियां पीछे स्त्री रूपसे तीर्थकर हुए, इत्यादिक बहुत बडे बडे काम इस चौबीसी में स्त्रियों ने किये है । प्रायः पुरुष तो कार्य करे उस में कया आश्चर्य है। परंतु स्त्रियों को करना दुर्लभ होता है। पुरुष को तो पूजा की सामग्री मिलनी सुगम है। परंतु स्त्री को मुश्केल है। इस वास्ते द्रौपदी का अधिकार विस्तार से कहा है । यदि स्त्री ने ऐसे पूजा की तो पुरुषों ने बहुत की हैं । इस में क्या संदेह है ? कुछ भी नहीं। और जो कहा है कि एक ही बार पूजा की कही है। पीछे पूजा की कही भी नहीं कही है। इस का उत्तर-प्रतिमा पूजनी तो एक बार भी कही है। परंतु द्रौपदी ने भोजन किया ऐसे तो एक वार भी नहीं कहा है तो तुम्हारे कहे मुजिब तो उस ने खाया भी नहीं होगा ! तथा तुंगीया नगरी के श्रावको ने साधु को एक ही समय वंदना की कहा है। तो क्या दूसरे समय वंदना नहीं की होगी ? जरा विचार करो कि लग्न (विवाह) के समय मोह की प्रबलता में भी ऐसे पूर्णोल्लास से जिन पूजा की है तो दूसरे समय अवश्य पूजा की ही होगी इस में क्या संदेह है ? परंतु सूत्रकार को ऐसे अधिकार वारंवार कहने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आगम की शैली ऐसी ही है, और उस को जानकार पुरुष ही समझते है; परंतु तुम्हारे जैसे बुद्धिहीन मूर्ख नहीं समझते हैं। सो तुम्हारे मिथ्यात्व का उदय है। जेठमल ने लिखा है कि "पद्योत्तर राजा के यहाँ द्रौपदी ने बेले बेले के पारणे आयंबिल का तप किया परंतु पूजा तो नहीं की " उत्तर - अरे भाई ! इतना तो समझो कि तपस्या करनी सो तो स्वाधीन बात है और पूजा करने में जिनमंदिर तथा पूजा की सामग्री आदि का योग मिलना चाहिये । सो पराधीन तथा संकट में पड़ी हुई द्रौपदी उस स्थल में पूजा कैसे कर सकती ? सो विचार के देखो ! जेठमल ने लिखा है कि "द्रौपदी ने पूर्वजन्म में सात काम अयोग्य करे, इस वास्ते उस की पूजा प्रमाण नहीं "उत्तर - इस से तो ढूंढक और बुद्धिहीन ढूंढक शिरोमणि जेठमल श्रीमहावीरस्वामी को भी सच्चे तीर्थंकर नहीं मानते होगे ! क्योंकि श्री महावीरस्वामी के जीवने भी पूर्वजन्म में कितनेक अयोग्य काम किये थे- जैसे कि (१) मरीचि के भव में दीक्षा विराधी सो अयोग्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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