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( २८ ) और यमुना के किनारे है, बनारस से १३ योजन है । एक महाशय ने यहां तक प्रतिपादन किया था कि कौशाम्बी यमुना के किनारे ही नहीं है।
वाराणसी--काशीदेश की राजधानी थी। पसेनदि के राज्यकाल में यह देश कोशल में सम्मिलित कर लिया गया था।
मिथिला--विदेह देश की राजधानी थी। चम्पा से १६ योजन दूर था । अाजकल यह जनकपुर नाम से प्रसिद्ध है जो कि नेपाल राज्य में है।
सूसुमारपुर-यह सूसुमारगिरि प्रतीत होता है, भग्ग (भंगी) देश की राजधानी थी। भग्गदेश वैशाली और सावत्थी के बीच में ही था। अनुमान होता है कि इसका दूसरा नाम पावा था ।
भोगपुर--बौद्धग्रन्थकारों ने इसे भोगनगर लिखो है । वैशाली से कुशीनारा वाले मार्ग पर यह पांचवा पड़ाव था।
छम्माणि--मगधदेश में था, बौद्धों ने इसे खानुमत लिखा है।
मध्यमा--यह मध्यदेश की पावापुरी है, मल्लदेश की पावापुरी से भिन्न है। यहीं वीरप्रभु का निर्वाण हुआ था। यह बिहारशरीफ से सात मील है । स्वर्गीय हरमन जैकोबी ने भी अपने सन् ३० वाले जर्मनभाषा के लेख में इसी पावापुरी को वीरप्रभु का निर्वाण स्थान माना है।
पावा तीन मानी जाती हैं एक मल्लों को, दूसरी भंगी (भग्ग) की राजधानी, तीसरी मध्यम पावा। मल्लदेश की तथा भग्ग देश की पावा के बीच में होने कारण कुछ लोग इसे मध्यमपावा मानते
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