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क्या ज० ती० डो० मुं० मुं० बांधते थे। १-जैन श्रमण दो प्रकार के होते हैं।
३४७ २-लौकाशाह डा० मुँ. मैं नहीं बाँधी थी ३४८ ३-खुल्ले मुँह बोलने में वायुकाय का सवाल ३५२ ४-खास कर मुँहपत्ती बाँधने का कारण
३५३ ५-वायुकाय जीवों के शरीर और भाषा के पुगद्ल ६-मुखवत्रिका का श्रादश ७-मुँहपत्ती के प्रतिलेखन की विधी
३५५ ८-मुँहपत्ती द्वारा कहाँ तक दया पाली जाती है ३५८ ९-स्वामी रत्नचन्द्रजी का उतरासन
३५९ १०- तीर्थङ्करों के मुँह पर मुंहपत्ती की कल्पना ३५९ ११-सिद्धों की पहचान के लिये मूर्ति को मानना ३६१ १२-स्था० दिये हुए चित्रों की प्रतिकृति और विवरण ३६२ १३-चित्र दूसरा
३६५ १४-चित्र तीसरा मेधकुमार की दीक्षा
३६६ १५-चित्रों को मीमांसा
३६७ १६-सिद्धों की र्तियों के मुंगट कुंडल एवं मुँहपत्ती ३६८ १७-जैन साधुओं के उपकरण संख्या
३७० १८-मृगा राणी और गोतमस्वामो
३७२ १९-श्वांसोश्वस लेते मुँह पर हाथ रखना (आचारांग ) ३७४
२०-शकेन्द्र के भाषा का अधिकार ( भगवती सूत्र) , . २१-अचेलक मुनि को कटिबद्ध रखना (आचा०) ३७६
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