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________________ ( ६७ ) "" १४० - शत्रु जय तीर्थ शाश्वता रहना कहां ? १४१ - कृत्रिम पदार्थ की स्थिति संख्या काल० ? १४२ - लौकाशाद के मत में पांच लाख मनुष्य ? १४३ - भगवान् ने तो अहिंसा धर्म कहा है ? १४४ - मूर्तिपूजकों के मुँह से तो नहीं सुना है ? १४५ - पूजा में हिंसा करके धर्म मानते हो ? १४६ - पूजा यत्नों से नहीं की जाती है ? १४७- सूत्रों में १२ कुलकी गौचरी करना लिखा है ?,, १४८ - सूत्रों में २१ प्रकार का पानी लेना० ? १४९ - सवेगी साधुत्रों के श्राचार शिथिलता ? १५० --- आपके साधु विहार में आदमी रखते हैं ? १५१ - आपके साधु हाथ में दंड क्यों रखते हैं ? १५२ - धोवण पीना कठिन हैं इस लिये दूँ० सं० १ १५३ - एक ग्राम का उदाहरण ? "" 99 39 39 १५४ -- हमारा क्या कहना है ? Jain Education International " For Private & Personal Use Only 39 "" " "" " 39 91 "" १५५ - संवेगी साधुओं की क्रिया १५६ -- स्थानकवासी साधुत्रों की क्रिया १५७ - क्रिया आप में ज्यादा है पर तपस्य तो ० १५८ - आपके अंदर आडम्बर विशेष है ? १५९ - मूर्तिपूजा से क्या देश को कम नुकशान पहुँचाया ? १६० - वे साधु हमारी समुदाय के नहीं हैं ? १६१ - मैं कब बहता हूँ कि वे मूर्तियां जैन की हैं ?,, १६२ - मन्दिर मूर्तियों के कारण ही देशदरिद्र हुआ ? ३६३- हम मूंजि रहने को कब कहते हैं "" 19 ," "" 99 "" २८५ 99 २८६ २८७ "" २८८ २८९ २९० 39 २९१ २९२ "9 २९३ २९४ २९७ 19 "" ३०१ ३०३ 39 ३०५ 39 ३०७ www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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