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________________ ( ५९ ) नम्बर विषय ९२ - जैतलसर की प्राचीन मूर्ति । ९३ -- श्रीमान् हीरानन्द शास्त्रीजी के अभिप्राय । पृष्ठ १ : ९. १४० १४० १४० - १४१ १४१ १४१ १४३ १४३ १४२. १४५ १४५ १४६ १०५ --- पुरातत्व विज्ञ श्रीराखलदास बनर्जी क्या कहते हैं ? १४९ १०६--बड़े बड़े राजा महाराजाओं के दुर्गों में जैन मन्दिर । १५१ १०७ -- भारत के रमणीय पहाड़ों के शिखरों पर जै० मं० । १५३. १०८ - अन्य धर्मियों ने स्वीकार की हुई जैनमूर्तियां । १०९ -- मन्दिर निर्माताओं की भावना । ११० -- जैनमूर्तियों का सार्वभौम साम्राज्य । ९४ - - महाराष्ट्रीय प्रदेश में प्राचीन मूर्तियाँ । ९५ -- बेनाकटक से मिली प्रा० मू० (२२०० वर्ष की) ९६ -- श्रावत्थी नगरी को संभवनाथ का प्रा० मन्दिर । ९७ -- भूमि से मिलिहुई मूर्तिपर (१८४ का लेख ) ९८ - - महावीर पूर्व पांचवी छठी शताब्दी की मूर्तिएँ । ९९ -- विशाला नगरी के आसपास के खोदकाम | १०० - - मथुरा के कंकालि हील से मिली अनेक मूर्तियां । १०१ -- पुरातत्वज्ञ श्रीमान् सर विन्सेन्ट स्मिथ का मत । १०२ -- वसुदेव शरण अ० ऐ० ऐल० के अभिप्राय । १०३ -- अहिछता नगरी का प्राचीन मन्दिर । १०४ -- डॉ० हरमन जेकोबी के शब्द । Jain Education International १५७ १११ -- अष्ट्रीया अमेरिका मंगोलि में जैन स्मारक । ११२ - यूरोप के प्रत्येक प्रान्त में मूर्तिपूजा का विवरण । १५८ ११३ - मूर्तियों की प्राचीनता । ११४ - मूर्तिपूजकों की संख्या । १६३. १६५ १५५ १५६ १५६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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