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क्या ती• मुं० मुँ० बाँधते थे हां मताग्रहो लोगों को अपने अवगुण नहीं दिखते हैं तथापि ऐसे निपक्ष लोगों के वाक्यों पर ध्यान लगा कर देखने से साफ साफ मालूम हो जायगा कि ऐसी कुप्रवृति शास्त्र विरुद्ध तो है ही पर साथ में लोक विरुद्ध होने के कारण ही मध्यस्थ लोगों को अपने इस प्रकार के उद्गार निकालने पड़ते हैं खैर ! " गई को जान दो, राख रही को" इस लोक युक्ति पर लक्ष देकर अब भी अपनी प्रवृति को सुधारो और जैन शास्त्रानुसार साधुओं का पवित्र वेश को धारण कर स्व पर का कल्याण करने में समर्थ बनो, यही हार्दिक भावना है। यदि आप में एक दम इतनी उदारता न हो तो कम से कम लौकाशाह कि 'जिनके आप अनुयायी होने का दावा करते हों' उन्हीं की परम्परा के श्री पूज्यादि आज विद्यमान हैं उनकी आज्ञा का पालन कर इस कुलिंग से तो बचने की उदारता बतलाओ।
॥ इति ॥
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