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________________ ३९९ क्या ती० मुँ० मुँ० बाँधते थे ? देवगुप्तसूरि१३ ये सर्वाचार्य मूर्ति के उपासक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले थे । भगवान महावीर की चौदहवीं शताब्दी आचार्य शीलांगसूरि १ सर्वदेवसूरि देवगुप्रासूरि हरिभद्रसूरि (द्वितीय) इत्यादि यह सब मूर्ति मानने वाले और मुँहपत्ती हाथ में रखने वाले ही थे । भगवान महावीर की पन्द्रहवीं शताब्दी महर्षि २, यशोभद्रसूरि ३, सिद्धसूरि ४, वीरगणि५, सर्व देवसूरि६, उद्योतनसूरि७, शोभनमुनिट, सिद्धसूरि९, कक्कसूरि १० ये सब प्रभाविक आचार्य मूर्तिपूजा प्रचारक ही थे । १३ -- राव गोसलभाटी आदि को उपदेश द्वारा जैन बनाकर आर्यगौत्र ( लुणावत ) की स्थापना की । - १ – आपने वि० सं० ९३३ में आचारांगादि सूत्रों पर टीकाएँ रचीं । २ - कर्म विपाक ग्रन्थ के कर्ता । ३ - मालानी प्रान्त से जैन मन्दिर को विद्याबल से उड़ा के नडलाई में रखा वह आज भी विद्यमान है । ४ - पाटण के महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा कारक । ५ - योगबल और अनेक विद्याओं के पारगामी | ६ - वटवृक्ष के नीचे आठ शिष्यों पर वासक्षेप दे आचार्य बनानेवाले । ७ - वटवृक्ष के नीचे ८४ शिष्यों को भाचार्य पद देनेवाले । ८ - संस्कृत साहित्य की प्रौढ़ सेवा करनेवाले । ९ - नये जैन बनाके छाजेड़ गौत्र स्थापन करनेवाले | १० - लाखों जैन बनाकर वागरेचांदि गौत्र संस्थापक और पंच प्रमाण अन्थ के कर्ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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