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क्या ती० मुँ० मुँ० बाँधते थे ?
देवगुप्तसूरि१३ ये सर्वाचार्य मूर्ति के उपासक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले थे ।
भगवान महावीर की चौदहवीं शताब्दी
आचार्य शीलांगसूरि १ सर्वदेवसूरि देवगुप्रासूरि हरिभद्रसूरि (द्वितीय) इत्यादि यह सब मूर्ति मानने वाले और मुँहपत्ती हाथ में रखने वाले ही थे ।
भगवान महावीर की पन्द्रहवीं शताब्दी
महर्षि २, यशोभद्रसूरि ३, सिद्धसूरि ४, वीरगणि५, सर्व देवसूरि६, उद्योतनसूरि७, शोभनमुनिट, सिद्धसूरि९, कक्कसूरि १० ये सब प्रभाविक आचार्य मूर्तिपूजा प्रचारक ही थे ।
१३ -- राव गोसलभाटी आदि को उपदेश द्वारा जैन बनाकर आर्यगौत्र ( लुणावत ) की स्थापना की ।
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१ – आपने वि० सं० ९३३ में आचारांगादि सूत्रों पर टीकाएँ रचीं । २ - कर्म विपाक ग्रन्थ के कर्ता ।
३ - मालानी प्रान्त से जैन मन्दिर को विद्याबल से उड़ा के नडलाई में रखा वह आज भी विद्यमान है ।
४ - पाटण के महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा कारक ।
५ - योगबल और अनेक विद्याओं के पारगामी |
६ - वटवृक्ष के नीचे आठ शिष्यों पर वासक्षेप दे आचार्य बनानेवाले ।
७ - वटवृक्ष के नीचे ८४ शिष्यों को भाचार्य पद देनेवाले ।
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- संस्कृत साहित्य की प्रौढ़ सेवा करनेवाले ।
९ - नये जैन बनाके छाजेड़ गौत्र स्थापन करनेवाले |
१० - लाखों जैन बनाकर वागरेचांदि गौत्र संस्थापक और पंच प्रमाण
अन्थ के कर्ता ।
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