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________________ स्था. शास्त्रों के प्रमाण । ३८० पत्रिका हाथ में रखते हैं और बोलने के समय मुह आगे रख यत्नपूर्वक निर्वद्य भाषा बोलते हैं। ___अब कतीपय प्रमाण हम स्थानकवासियों के माने हुए मूल सूत्र तथा अनुवाद किये हुए सूत्रों के यहां पर उद्धृत कर देते हैं कि जो लोग केवल अन्ध परम्परा के पिच्छे चलने वाले हैं उनके भी ज्ञान चक्षु खुल जाय । मुँहपत्ती के विषय स्थानकवासियों के माने हुए सूत्रों के प्रमाण। "कुइए ककराइए छीए" हिन्दी अ० “खुल्ले मुंह बोला हो-छींक उबासी ली हो इत्यादि" स्वामी अमोलखर्षिजीकृत हिन्दी अनुवाद भावशक सूत्र पृष्ठ ५५ । यह पाठ प्रतिक्रमणसूत्र का है और दिन रात्रि के अन्त में सदैव बोला जाता है यदि डोराडाल मुंहपत्ती दिन रात्रि मुंह पर बन्धी हुई हो तो उघाड़े मुंह बोलने का प्रायश्चित क्यों कहा जाता, इससे साबित होता है कि साधु मुँहपत्ती हाथ में रखते हैं और कदाचित् अनोपयोग से खुले मुंह वाला हो उसका ही मिच्छामि हुकडं दिया जाता है । आगे नमुकारसी श्रादि प्रात्याख्यानों के प्रागार के विषय में आप फरमाते हैं कि "अन्नत्थणाभोगेणं, सहस्सागारेणं" हिन्दी अनुवाद-भूल कर अनायास खाने में श्राजवे और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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