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जैन शास्त्रों का प्रमाण ।
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भगवान के कथनानुसार गोतम स्वामी मृगापुत्र को देखने के लिये मृगाराणी के वहां गये उस समय मृगाराणी गौतम स्वामि से कहती है
"मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-एहणं तुम्भे भंते ! मम अणुगच्छई जहाणं अहं तुम्भे मियापुत्तं दारगं उवदसेमि, ततेणं से भगवं गोयमे मियादेवि पिठो समणु गच्छित्ति, ततेणं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकढमाणी, अणुकद्दमाणी जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छिति उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुंह बंधेति, मुहबंध माणी भगवं गोयमं एवं बयासी-तुम्भे वि णं भंते ! मुंहपोशियाए मुंहबंधइ, ततेणं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्तसमाणे मुहपोतियाए मुंहबंधति, ततेणंसा मियादेवी परमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेति. ततेणं गंधे निगच्छति से जहा नामए अहिमडेति" ___ भावार्थ-मृगा राणी ने गौतमस्वामी को कहा कि हे भगधन् ! आप मेरे पीछे २ आओ मैं मेरा पुत्र श्रापको बतलाऊँ, ऐसा कह कर मृगाराणी मृगापुत्र के लिए आहारादि भोजन की हाथ गाड़ी खींचती हुई आगे चली, गौतमम्वामा उसके पीछे २ चले, जहाँ भूमिघर ( भोयरा) का दरवाजा था, वहां आये; वहां आकर चार पड़ वाले वस्त्र से मृगापुत्र के शरीर की दुर्गन्धी का बचाव करने के लिए मृगारानी ने पहले अपना मुंह बांध लिया, फिर गौतमम्वामी को भी कहा कि हे भगवन् आप मी
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