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चार चित्रों का सम्बन्ध
- लौकागच्छीय एक व्यक्ति - क्योंजी ! आपने हमारे गुरुजी चित्र के साथ इन तीन मुँह बँधे साधुओं के चित्र क्यों लगा दिये हैं ?
- भूर्तिपूजक - क्यों आपको क्या हर्ज हुआ ?
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लौं० - ये साधु हमारी पंक्ति के नहीं हैं।
-मूर्त्ति०- क्या आपको दीखता नहीं है कि इन प्रत्येक साधुओं के बिच बिच में एक एक दीवार खड़ी हैं। शायद आप इन साधुओं को भूमि पर भी खड़ा रहने देना नहीं चाहते हो । यह एक आश्चर्य की बात है कि इस बीसवीं शताब्दी में विरोधी धर्म के साधुओं के साथ भी हाथ से हाथ मिलाये जाते हैं तो यह वोनों साधु तो अपने को लौंकाशाह के अनुयायी होना बतलाते हैं, फिर आपका हृदय इतना संकीर्ण क्यों हैं ।
- लौं० - ये तीनों साधु हमारे लौंकाशाह के अनुयायी नहीं है पर लौकाशाह की आज्ञा भंजक हैं और इनका वेश एवं आचरण भी हमारे से भिन्न हैं ।
मूर्त्ति० - लोकाशाह ने तीर्थङ्करों की आज्ञा नहीं मानी, इन तीन साधुओं के श्राद्यपुरुषों ने लौंकाशाह की श्राज्ञा का मंग किया | अतएव आप सब हैं तो एक ही बेलड़ी के फल न ?
लौं०-- आपका यह कहना ठीक नहीं हैं क्योंकि लौंकाशाह ने कब डोराडाल मुँह पर मुँहपत्ती बाँधी थी। जब इन तीनों के गुरुओं ने स्वयं डोराडाल मुँहपर मुँहपत्ती बांध कुलिंग धारण किया वह इनकी शकल से ही श्राप देख सकते हो। इतना ही नहीं पर इन लोगों ने तो एक और ही जबर्दस्त जुल्म कर डाला है कि तीर्थङ्कर महावीर को भी अपने सदृश उपयोगशून्य समझ डोराडाल मुँहपत्ती मुँहपर बंधवादी है क्या
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