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________________ कलित चित्रों का कारण ? - ३६४ ___ श्वेताम्बर और दिगम्बर तो अपने भगवान् महावीर को दीक्षा समय से निर्वाण समय तक अचेल ही मानते हैं इतना ही क्यों पर लौकागच्छोय संघ भी तीर्थकर महावीर को अचेलक (वस्त्र मुक्त) ही मानते हैं तब स्थानकमार्गी समाज को मुँहपर डोराडाल दिन भर मुँहपत्ती बाँधने का कोई भी प्रमाण शास्त्र एवं इतिहास नहीं मिला और इधर अच्छे अच्छे विद्वान् एवं प्रतिष्ठित स्थानकवासी साधु मुँहपत्ती का मिथ्या डोरा तोड़ तोड़ कर मूर्तिपूजा स्वीकार करने लगे इस हालत में कई लोगों ने भगवान महावीर के मुंहपर डोरावाली मुँहपत्ती बांधने के कई कल्पित चित्र बना कर भद्रिक जनता को बहका रहे हैं कि भगवान् महावीर भी मुंहपर मुंहपत्ती बाँधते थे । शायद स्थानकवासी समाज ने अपने एक अलग ही महावीर की कल्पना करली हो जो स्थानकवासी समाज के सदृश उपयोग शून्य होगा और इसी कारण उन स्थानकवासी समाज के अल्पज्ञ महावीर को डोराडाल मुंहार मुंहपत्ती बाँधनी पड़ी हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है और उसी उपयोग शून्य अल्पज्ञ महावीर का चित्र बना के स्वामि चौथमलजी ने अपनी पुस्तक में मुद्रित करवाया हो, यह बात मानने में कोई हर्ज भी नहीं है पर जैनश्वेताम्बर दिगम्बर और लौकागच्छीयों को सावधान रहना चाहिये ऐसे महावीर को वे हर्गिज जैन तीर्थङ्कर नहीं समझे कि जिनके मुंहपर डोरावाली मुंहपत्ती बाँधी हो, वे तो स्थानकवासी समाज के कल्पित महावीर है। स्थानकवासी भाई मुंह पर डोराडाल मुँहपत्ती बाँधने की सिद्धी के लिये महावीर का कल्पित चित्र बनाया पर इससे झगड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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