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________________ ( २ ) चित्रादि है यदि नहीं तो ये सब व्यर्थ ही क्यों बनाये जाते हैं ? -स्था० न तो हमारे साधु अपनी मूर्ति, पादुका, समाषि और चित्र बनवाते हैं और न वे ऐसा करने का उपदेश ही देते हैं और न उनको वन्दन नमस्कार ही करते हैं । -स्था० www -- मूर्ति० - यदि आपके साधुओं को अपनी मूर्ति, पादुका, समाधि और फोटूओं द्वारा अपनी पूजा करवाना इष्ट नहीं है तो फिर इन मूर्ति आदिक किसके उपदेश से किसने बनवाई ? -यह तो भक्त लोगों ने अपनी भक्ति से बना ली हैं । - मूर्ति० - मूर्तियें तो भक्त लोगों ने अपनी भक्ति के वशीभूत होकर बना ली होगी परंतु इन फोटुत्रों से तो प्रत्यक्ष मालूम होता है कि आपके पूज्य जी ने सावधानी से बैठकर रूची पूर्वक फोटू खिंचवाया है | यदि ऐसा नही होता तो इसका पूर्ण रूप से विरोध करते ताकि अत्र तक एक भी फोटू नहीं मिलता। इसके बदले में आपने तो बहुत साधुओं के फोटुओं का ग्रूप बनवाकर मूल्य पर बिकवाने का भी अनुमोदन किया और वे प्रप आज भी भक्तों के घर २ में दृष्टिगोचर हो रहे हैं। उन्हीं से ही प्रस्तुत दो प्रप हमको प्राप्त हुए हैं वे आपके सामने विद्यमान हैं । स्था० - खैर ! कुछ भी हो परन्तु आपके मंदिर बनवाने में व मूर्तिपूजा करने में जितना प्रारम्भ होता है उतना हमारे पूर्वोक्त कार्यों में नहीं होता है । - मूर्ति ० -सच बतलाओ जब इनको श्राप मानते ही नहीं तो फिर इनके बनवाने का क्या मतलब है ? - स्था० - मतलब क्या ! ये हमारे उपकारी पुरुष हैं। उन्हीं की स्मृति के लिये ये सब बनवाये जाते हैं ? - मूर्ति० - हाँ यह ठीक है । परंतु फिर आप आरंभ की बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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