________________
३५३
क्या ती• मुं० Y० बाँधते थे
____ जैसे:-मुँह की पोलार में, नाकको पोलार में, कॉन की पोलार में, आंखों की पलकों में, इत्यादि शरीर के अनेक अङ्गों में वायुकाय के असंख्य जीव रहते हैं और भाषा प्रारंभ-अर्थात् कण्ठ से निकलते ही मुंह में के वायुकाय के जीव मर जाते हैं। तथा वे पुद्गल वस्त्र की मुँहपत्ती तो क्या पर यदि लोह की भी मुँहपत्ती लगाई जाय तो भी निकलने से रुक नहीं सकते। हां ! यह उपाय हो सकता है कि यदि मुँह की पोलार को वस्त्रादि ठूस ठांस कर भर दी जाय तो इन जीवों की रक्षा हो सकती है। परन्तु ऐसा दया पात्र न तो आज तक कोई नजर आया, और न फिर आने की संभावना है। __ वास्तव में मुँहपत्तो से जो मुँह बाँधा जाता है वह वायु काय के जीवों की रक्षा का कोई कारण नहीं है किन्तु मिथ्यात्व का उदय होने पर जो खोटी बात पकड़ ली है उसे हठधर्मी से अब नहीं छोड़ना ही है। क्यों कि यदि ऐसा न होता तो जो साधु सदा मौन व्रत रखते हैं या श्रावक मौन-व्रत से सामायिक करते हैं, उनको फिर मुँहपर मुँहपत्ती बांधने की क्या जरूरत हैं। ? क्यों कि उनका सिद्धान्त तो यह है कि खुले मुँह बोलना नहीं चाहिए, किन्तु जब मौन-व्रत ही है तो फिर न तो बोलना
और न वायु काय के जीवों का मरना होता है, ऐसी हालत में मुंहपर मुँहपत्ती बांधने से सिवाय नुकसान के कोई फायदा नहीं है।
वायु-काय जीवों के शरीर वादर होते हुए भी वे इतने सूक्ष्म है कि छदमस्थों के दृष्टि में नहीं आते हैं । यह बात खुद तीर्थकरोंके कहने से आज भी हम ज्यों की त्यों मानते हैं । जब तीर्थ.
(२३)-४४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org