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________________ ( ३४ ) आय तो मालुम होगा कि पुस्तकों की विकी की रकम नाम मात्र की ही आई है और जो रकम श्रई वह भी पुनः पुस्तकों के छपवाने में ही लगादी गई है । फिर भी आप विद्याप्रेमी और साहित्य प्रचारक सज्जनों की कृपा से यह संस्था अपना शिर ऊँचा रख समाज की सेवा करने में आगे कदम बढ़ाती ही जा रही है । कृपया ऐसी संस्था को अपनाइये कार्यकर्ताओं के उत्साह में वृद्धि पहुंचाइये तथा नयो पुस्तक के प्रसिद्ध होते ही कम से कम उसकी १११ प्रति मंगवा कर अवश्य पढ़िये इससे आपको अनेक लाभ हैं ( १ ) आपका द्रव्य ज्ञान खाता में लगेगा ( २ ) अपूर्वज्ञान पढ़ने को मिलेगा तथा ( ३ ) आपके द्रश्य से पुनः पुस्तकों के छपने से निरन्तर ज्ञान प्रचार होगा । अब जरा पुस्तक का महात्म्य भी सुन लीजिये । ज्ञान प्राप्ति का खास साधन पुस्तक ही है । स्कूलों में तो विद्यार्थी सिर्फ टाइमसर हो विद्या हाँसल कर सकते हैं । परन्तु पुस्तकों द्वारा तो विद्यार्थी हमेशा ज्ञान प्राप्ति कर सकते हैं चाहे हम व्यापारी हों, - अहलकार वकील हों, - डाक्टर कारीगर हों, ज्योतिष वैद्यक के इच्छुक हों च हे जवान हों, बालक हों, बुड्डा ह्रीं स्त्री हों, पुरुष हों, पुस्तकें हमारी गुरु हैं, जो हमें बिना मारे पीटे ज्ञान देती हैं, पुस्तकें न तो कटुबचन बोलती हैं और न क्रोध कर गाली प्रदान करती हैं । पुस्तकें महावारी तनख्वाह भी नहीं मांगती हैं । श्राप इनसे रातदिन घर में या बाहर जहाँ जी चाहे और जब इच्छा हो काम ले सकते हो । पुस्तकें कभी सोती भी नहीं हैं। ज्ञान देने से इन्कार करना तो ये जानती ही नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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