________________
उपसंहार
मैं कहता हूँ कि शाबास! वीर शाबास !! मूर्त्ति पूजा में दृढ़ श्रद्धालु होना और उसका उपासक बनना यह आपकी कर्त्तव्य-शीलता भवभयभीता और सत्य को स्वीकार करने की सद्बुद्धि है । एवं यह आपका आत्महित कार्य प्रशंसनीय भी है । फिर भी आपको जरा यह बतला देना चाहता हूँ कि, जैन मन्दिर मानने में जैनियों को हानि है या लाभ? इसे भी जरा ठेर कर एकाग्र ध्यान से समझें ।
( १ ) गृहस्थों को अनर्थ से द्रव्य प्राप्त होता है । और वह अर्थ में ही व्यय होता है, अर्थात् प्राय व्यय दोनों कर्म बन्धन के कारण हैं । इस हालत में वह द्रव्य यदि मन्दिर बनाने में लगाया जाय तो सुख एवं कल्याण का कारण होता है । क्योंकि एक मनुष्य के बनाये हुए मन्दिर से हजारों लाखों मनुष्य कल्याण प्राप्त करते हैं । जैसे श्रबु आदि के मन्दिरों का लाभ अनेक प्रेज तक भी लेते हैं ।
( २ ) जैन मन्दिर में जाकर हमेशां पूजा करने वाला, न्याय, पाप और अकृत्य करने से डरता रहता है, कारण उसके संस्कार ही ऐसे हो जाते हैं ।
(३) मन्दिर जाने का नियम है, तो वह मनुष्य प्रति दिन थोड़ा बहुत समय निकाल वहाँ जा अवश्य प्रभु के गुणों का गान करता है और स्वान्तःकरण को शुद्ध बनाता है ।
( ४ ) हमेशां मन्दिर जाने वाले के घर से थोड़ा बहुत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org