________________
मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३३८
उ०- जब तो श्री वीतराग देव को वन्दन करने वाले भी संसार में भ्रमण करेगा ही । क्योंकि वन्दना करने में भी तो ऊठ-बैठ करने में असंख्य वायुकाय के जीवों की हिंसा होती है, समझे न ।
प्र० - पूजा करने में तो वायुकाय के अलावा जल पुष्प अग्नि के जीवों की भी हिंसा होती है ?
उ०- भगवान् ने यह कब फरमाया था कि वायुकाय के जीवों के लिये तुम्हें छूट है कि कितने ही जीव मरे पर तुम्हें पाप नहीं लगेगा ।
प्रः –
- वीतराग की वन्दन करने में अध्वसाय शुभ होने से उस हिंसा का पाप नहीं लगता है पर पुन्य एवं शुभ कर्म बंधते हैं । उ०- तो क्या पूजा करने में हमारे परिणाम खराब रहना आप समझते हैं ?
प्र० - नहीं । परिणाम तो खराब नहीं रहता है ।
- फिर आपके वन्दना करने में वायुकाय के जीवों की हिंसा हो उसका तो श्रापको पाप नहीं लगे और हमको पूजा करने में पाप लग जाय यह किस कोस्ट का न्याय है । जरा हृदय पर हाथ धर आपही सोचें कि उत्सून भाषण करना, परमेश्वर की भक्ति का निषेद करना, और इस कारण से बेचारे भद्रिक लोगों को बहका कर धर्म से पतित बनाने वाले तो संसार में भ्रमण नहीं करे पर संसार से पार हो जायगा, और पूर्णभक्ति से परमेश्वर की सेवा पूजा भक्ति, चैत्यवन्दन स्तुति स्तवनादि क्रिया करने वाले संसार में भ्रमण करेगा | क्या आपकी अन्तरात्मा इस बात को स्वीकार कर लेगा, सच्चे दिल से आप ही कह दीजिये ?
प्र० - मेरी आत्मा तो इस बात को स्वीकार नहीं करती है
111
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org