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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३३४ आपने चट से लिख दिया कि दहीवड़ा खाना आनन्द ने रखा है शायद आपके पूज्यजी को दहीबड़ा विशेष रुचिकर होगा; अन्यथा देखिये मूलसूत्रः"ननत्थ सेहंब दालियं बेहि अबसेसं परिमाणं करइ" स्वामी अमोलखर्षिजी कृत हिन्दी अनुवादः
"जेमने की विधि का प्रमाण करते वक्त दाल के बड़े तथा पुड़े रक्खे और जेमन के प्रत्याख्यान, "उपासकदशांग सूत्र पृष्ठ १५" - यह भी आपके ही घर का अनुवाद है किन्तु इसमें दहीबड़े का नाम तक नहीं मिलता है। अब आपके पूज्य जी द्वारा किया गया उक्त मूल पाठ का अर्थ भी देख लीजिये:___"फिर जेमन विधि का परिमाण किया कि दाल के बने हुए
और अधिक खटाई में डाले हुए पदार्थ जैसे दहीबड़ा के अतिरिक्त और सब जेमन विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।" पृष्ट २७९" ___ उपरोक्त मूल सूत्र के पाठ में दही, छास, आदि खटाई का नाम तक नहीं है। स्वामी अमोलखर्षिजी के हिन्दी अनुवाद में भी दही छास आदि खटाई का खटास नहीं है, फिर नये विद्वान् पूज्यजी ने यह दहीबड़ा कहाँ से निकाल दिया और क्यों कर विरक्ताऽवस्था में दहीबड़े पर सहसा रुचि दौड़ गई ? प्रियवर ! सांप्रतिक वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म यंत्र द्वारा शोध कर यह जाहिर कर दिया है कि ऐसे पदार्थों के मिश्रण से असंख्य जीवोस्पति होती है। फिर समझ में नहीं आता है कि पूज्यजी महाराज अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन ऐसी भद्दी बातों में क्यों करवा रहे हैं।
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