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________________ ३२९ मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर प्र०-"तिक्खुता" का पाठ बोलना और तीन बार ऊठबैठ के वन्दना करना। उ०-इस प्रकार किसी सूत्र में किसी ने वन्दना की है ? प्र०-हाँ बहुत से सूत्रों में ऐसा पाठ है । उ०-भला एक पाठ तो बतला दीजिये ? प्र०-लीजिये-"श्री उववाइ सूत्र" में राजा कूणिक भगवान को वन्दना करते हैं जैसे कि "समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो अायाहिणं पयाहिणं करति करता वंदति णमसंति वंदित्ता नमंसित्ता णिचासण गइदूरे सुस्मुसमाणं नमसमाणं अभिमुहा विणएण पंजलिउड़ा पज्जुबासँति" श्री उववाइसूत्र पृष्ट ९० मुनि श्री अमोलखर्षिजी कृत हिन्दी अनुवाद उ०-इसका मतलब क्या हुआ ? प्र०-कूणिक राजा ने श्रमण भगवंत महावीर को मर्यादा सहित तीन बार प्रदक्षिणा की,और प्रदक्षिणा करके वन्दन किया। उ०-तो जब आप अपने पूज्यजी को यही कहते हो न कि कूणिक ने तीन प्रदक्षिणा देकर वन्दना की थी। इससे यह तो साबित नहीं होता कि आप भी स्वतंत्र अपने पूज्यजी को वन्दना करते हो। प्र०—क्यों हमारी वन्दना कैसे नहीं हुई ? उ०-आपने तो कूणिक की प्रदक्षिणा की बात सुनाई है। उसे वन्दना करना कैसे कहा जा सकता है। और यदि सच पूछा जाय तब तो यह उल्टो एक प्रकार से पूज्यजी का श्राप द्वारा किया गया अपमान है क्योंकि मुँह से दूसरों की प्रदक्षिणा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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