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________________ ३०९ मु. पु० कि० प्रभोसर साध्वियोंको आहार पानीदे तो उसमें उसे धर्मयापुण्य होताहै वा नहीं? . प्र०-क्यों नहीं अवश्य होता है। ____30-तो यहाँ भी आप यही बात जान लीजिये-साधुओं को द्रव्य-पूजा का अधिकार न होने से वे नहीं करते हैं पर गृहस्थ लोग अधिकाराऽवस्था होने से द्रव्य-पूजा करते हैं और उन्हें धर्म भी अवश्य होता है। ... प्र०-आपके साधु गृहस्थों को पूजा करने का उपदेश करते हैं वो क्या इसमें द्रव्य पूजा में काम आने वाले सचिन द्रव्यों की साधुओं द्वारा अनुमोदना नहीं होती होगी? .. ३०-इसमें साधु सञ्चित द्रव्यों की अनुमोदना नहीं करते हैं परन्तु श्रावक पूजा कर भगवान की भक्ति करते हैं उसी का उपदेश और अनुमोदन करते हैं । भला आप ही बतलाईये कि आपके साधु, श्रावकों को व्याख्यान श्रवण करने का उपदेश देते हैं और प्रतिज्ञा भी कराते हैं तो क्या इसका अनुमोदन भी आपके साधु करते होंगे कि “श्रावकजी आपने अच्छा काम किया कि आज व्याख्यान सुना।" . प्र०-हाँ ऐसा जरूर करते हैं। .... उ०-तो बताईये कि यह अनुमोदन आते-जाते जीव हिंसा हुई उसका है या व्याख्यान सुना उसका है ? प्र०-व्याख्यान सुनने का यह अनुमोदन है,नकि जीव हिंसाका। उ०-इसी प्रकार हमारे साधु भी प्रमु-पूजा का ही अनुमोदन करते हैं न कि सञ्चित द्रव्यों का। प्र०-पर सञ्चित द्रव्यों का उपमर्दन तो आपके मुनियों के उपदेश से ही हुश्रा है न ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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