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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
वास्तव में न तो पुण्य कार्यों में द्रव्य व्यय करने से देश दरिद्र होता है और न मूंजी बनने से देश समृद्ध बनता है । शुभ कार्यों में लक्ष्मी का सदुपयोग करने से देश के पुण्य बढ़ते हैं और ऐसे कार्य करनेवालों का इहलोक और परलोक दोनों में शीघ्रातिशीघ्र कल्याण होता है । समझे न भाई ? . .... प्र०-हम मूंनी रहने का कब कहते हैं ? ___उ०-तो फिर उपरोक्त प्रश्न का मतलब ही क्या होता है ? मुंजीपन भी कहाँ तक ? कोई तो कहता है कि हमारे सिवाय किसी को अन्न दान भी नहीं देना । कोई कहता है कि हमारी समुदाय के सिवाय कोई साधु ही नहीं है । कोई कहता है कि मन्दिरों में द्रव्य क्यों चढ़ाते हो,तो कोई कहता है कि यात्रार्थ क्यों तीर्थों पर भटकते हो, इत्यादि। यह कृत्य उदारता का है या कंजूसों का ! जैन धर्म कितना उदार है, कैसी वात्सल्य भावना रखता है, कारण कार्य को लेकर वे कितने विशाल भाव रखते हैं इन सब बातों को सोच समझकर उदारता पूर्वक, जैन मन्दिर मूर्तियों को सेवा पूजा भक्ति आदि करके जो मनुष्य जन्म मिला है इसे उत्तम साधनों द्वारा सार्थक बना लीजिये । समझा न ।
प्र०-आपके साधु पूजा में धर्म बताते हैं तो वे स्वयं पूजा क्यों नहीं करते हैं ?
उ०-हमारे साधु भाव जा के अधिकारी हैं और भाव पूजा वे करते भी हैं ?
प्र०-भाव पूजा के अलावा द्रव्य पूजा में भी आपके साधु धर्म बताते हैं तो धर्म कार्य तो उन्हें भी करना चाहिये ? .
उ.-मैंने आपसे कहा था कि द्रव्य पूजा करने के वे अधिकारी
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